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उत्तराध्ययन सूत्र
त्रसकाय
१०७. तेऊ वाऊ य बोद्धव्वा
उराला य तसा तहा। इच्चेए तसा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे॥
१०८. दुविहा तेउजीवा उ
सुहमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता
एवमेए दुहा पुणो॥ १०९. बायरा जे उ पज्जत्ता
णेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अग्गी अच्चि जाला तहेव य॥
तेजस, वायु और उदार-अर्थात् एकेन्द्रिय त्रसों की अपेक्षा स्थूल द्वीन्द्रिय आदि त्रस-ये तीन त्रसकाय के भेद हैं। उनके भेदों को मुझसे सुनो।
तेजस् त्रसकाय--
तेजस् काय जीवों के दो भेद हैं—सूक्ष्म और बादर । पुन: दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं।
बादर पर्याप्त तेजस काय जीवों के अनेक प्रकार हैं
अंगार, मुर्मुर-भस्ममिश्रित अग्नि- कण अर्थात् चिनगारियाँ, अग्नि, अर्चि-दीपशिखा आदि, ज्वाला
उल्का, विद्युत् इत्यादि।
सूक्ष्म तेजस्काय के जीव एक प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं।
११०. उक्का विज्जू य बोद्धव्वा
णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता
सुहुमा ते वियाहिया॥ १११. सुहुमा सव्वलोगम्मि
लोग देसे य बायरा। इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ।।
सूक्ष्म तेजस्काय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर तेजस्काय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से तेजस्काय जीवों के काल-विभाग का कथन करूँगा।
वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं।
११२. संतई पप्पऽणाईया
अपज्जवसिया विय। ठिई पड़च्च साईया
सपज्जवसिया वि य॥ ११३. तिण्णेव अहोरत्ता
उक्कोसेण वियाहिया। आउट्टिई तेऊणं अन्तोमहत्तं जहन्निया॥
तेजस्काय की आयु-स्थिति उत्कृष्ट तीन अहोरात्र (दिन-रात) की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है।
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