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________________ ३९४ उत्तराध्ययन सूत्र ९४. पत्तेगसरीरा णेगहा ते पकित्तिया। रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वल्ली तणा जहा ९५. लयावलया पव्वगा कुहुणा जलरुहा ओसही-तिणा। हरियकाया य बोद्धव्वा। पत्तेया इति आहिया॥ प्रत्येक-शरीर वनस्पति काय के जीवों के अनेक प्रकार हैं। जैसे-वृक्ष, गुच्छ-बैंगुन आदि, गुल्मनवमालिका आदि, लता-चम्पकलता आदि, वल्ली- भूमि पर फैलने वाली ककड़ी आदि की बेल और तृण । लता-वलय-केला आदि, पर्वजईख आदि, कुहण-भूमिस्फोट, कक्करमत्ता आदि, जलरुह-कमल आदि, औषधि-जौ, चना आदि धान्य, तृण और हरितकाय-ये सभी प्रत्येक शरीरी हैं, ऐसा जानना चाहिए। साधारणशरीरी अनेक प्रकार के हैं—आलुक, मूल-मूली, शृंगवेरअदरक। ९६. साहारणसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया। आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य॥ ९७. हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केय-कन्दली। पलंदू-लसणकन्दे य कन्दली य कुडुंबए। ९८. लोहि णीहू व थिहू य कुहगा य तहेव य। कण्हे य वज्जकन्दे य कन्दे सूरणए तहा॥ ९९. अस्सकण्णी य बोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य। मुसुण्ढी य हलिद्दा य ऽणेगहा एवमायओ॥ हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, सिस्सिरिलीकन्द, जावईकन्द, केद, कंदलीकन्द, पलाण्डु-प्याज, लहसुन, कन्दली, कुस्तुम्बक, लोही, स्निहु, कुहक, कृष्ण, वज्रकन्द, और सूरण-कन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुंढी और हरिद्रा इत्यादि-अनेक प्रकार के जमीकन्द हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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