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________________ ३९० उत्तराध्ययन सूत्र ६८. संसारत्था उ जे जीवा दुविहा ते वियाहिया। तसा य थावरा चेव थावरा तिविहा तहिं ।। संसारस्थ जीवसंसारी जीव के दो भेद हैं-त्रस और स्थावर । उनमें स्थावर तीन प्रकार के हैं। ६९. पुढवी आउजीवा य तहेव य वणस्सई। इच्चेए थावरा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे॥ स्थावर जीव पृथ्वी, जल और वनस्पति-ये तीन प्रकार के स्थावर हैं। अब उनके भेदों को मुझसे सुनो। पृथ्वीकाय पृथ्वीकाय जीव के दो भेद हैं-सूक्ष्म और बादर। __पुन: दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं। ७०. दुविहा पुढवीजीवा उ सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो॥ ७१. बायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया। सण्हा खरा य बोद्धव्वा सण्हा सत्तविहा तहिं॥ किण्हा नीला य रुहिरा य हालिद्दा सुक्किला तहा। पण्डु-पणगमट्टिया खरा छत्तीसईविहा॥ बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय जीव के दो भेद हैं श्लक्षण-मृदु और खर-कठोर। मृदु के सात भेद हैं कृष्ण, नील, रक्त, पीत, श्वेत, पाण्डु-भूरी मिट्टी और पनकअत्यन्त सूक्ष्स रज। कठोर पृथ्वी के छत्तीस प्रकार ७३. पुढवी य सक्करा बालुया य उवले सिला य लोणूसे। अय-तम्ब-तउय-सीसग- रुप्प-सुवण्णे य वइरे य॥ शुद्ध पृथ्वी, शर्करा–कंकराली, बालू, उपल-पत्थर, शिला, लवण, ऊष-क्षाररूप नौनी मिट्टी, लोहा, ताम्बा, त्रपुक-रांगा, शीशा, चाँदी, सोना, वज्र-हीरा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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