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उत्तराध्ययन सूत्र
६८. संसारत्था उ जे जीवा
दुविहा ते वियाहिया। तसा य थावरा चेव थावरा तिविहा तहिं ।।
संसारस्थ जीवसंसारी जीव के दो भेद हैं-त्रस और स्थावर । उनमें स्थावर तीन प्रकार के हैं।
६९. पुढवी आउजीवा य
तहेव य वणस्सई। इच्चेए थावरा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे॥
स्थावर जीव
पृथ्वी, जल और वनस्पति-ये तीन प्रकार के स्थावर हैं। अब उनके भेदों को मुझसे सुनो।
पृथ्वीकाय
पृथ्वीकाय जीव के दो भेद हैं-सूक्ष्म और बादर। __पुन: दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं।
७०. दुविहा पुढवीजीवा उ
सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता
एवमेए दुहा पुणो॥ ७१. बायरा जे उ पज्जत्ता
दुविहा ते वियाहिया। सण्हा खरा य बोद्धव्वा सण्हा सत्तविहा तहिं॥ किण्हा नीला य रुहिरा य हालिद्दा सुक्किला तहा। पण्डु-पणगमट्टिया खरा छत्तीसईविहा॥
बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय जीव के दो भेद हैं
श्लक्षण-मृदु और खर-कठोर। मृदु के सात भेद हैं
कृष्ण, नील, रक्त, पीत, श्वेत, पाण्डु-भूरी मिट्टी और पनकअत्यन्त सूक्ष्स रज।
कठोर पृथ्वी के छत्तीस प्रकार
७३. पुढवी य सक्करा बालुया य
उवले सिला य लोणूसे। अय-तम्ब-तउय-सीसग- रुप्प-सुवण्णे य वइरे य॥
शुद्ध पृथ्वी, शर्करा–कंकराली, बालू, उपल-पत्थर, शिला, लवण, ऊष-क्षाररूप नौनी मिट्टी, लोहा, ताम्बा, त्रपुक-रांगा, शीशा, चाँदी, सोना, वज्र-हीरा।
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