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३६ - जीवाजीव - विभक्ति
४७. एसा
अजीवविभत्ती
समासेण वियाहिया । इतो जीवविभत्तिं वुच्छामि अणुपुव्वसो ||
४८. संसारत्या य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया । सिद्धाऽणेगविहा तं मे कित्तयओ सुण ॥
वुत्ता
४९. इत्थी पुरिससिद्धा य तहेव य नपुंसगा । सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिंगे तहेव य ॥ ५०. उक्कोसोगाहणाए य जहन्नमज्झिमाड़ य । उड्डुं अहे य तिरियं च समुद्दम्मिलम्मिय ॥
५१. दस चेव नपुंसेसु
वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं समण सिज्झई ||
५२. चत्तारि य गिहिलिंगे
अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण य अट्ठसयं समएगेण सिज्झई ॥
५३. उक्कोसोगाहणाए य सिज्झते जुगवं दुवे | चत्तारि जहन्नाए जवमज्झत्तरं सयं ॥
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यह संक्षेप से अजीव विभाग का निरूपण किया गया है। अब क्रमशः जीवविभाग का निरूपण करूँगा ।
जीव निरूपण
जीव के दो भेद हैं- संसारी और सिद्ध | सिद्ध अनेक प्रकार के हैं । उनका कथन करता हूँ, सुनो ।
सिद्ध जीव
स्त्रीलिंग सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध, नपुंसकलिंग सिद्ध और स्वलिंग सिद्ध, अन्यलिंग सिद्ध तथा गृहलिंग सिद्ध ।
उत्कृष्ट, जघन्य और मध्यम अवगाहना में तथा ऊर्ध्व लोक में, तिर्यक् लोक में एवं समुद्र और अन्य जलाशय में जीव सिद्ध होते हैं
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एक समय में दस नपुंसक, बीस स्त्रियाँ और एक सौ आठ पुरुष सिद्ध हो सकते हैं ।
एक समय में गृहस्थलिंग में चार, अन्यलिंग में दस, स्वलिंग में एक-सौ आठ जीव सिद्ध हो सकते हैं ।
एक समय में उत्कृष्ट अवगाहना में दो, जघन्य अवगाहना में चार और मध्यम अवगाहना में एक सौ आठ जीव सिद्ध हो सकते हैं ।
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