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________________ ३८२ उत्तराध्ययन सूत्र ११. एगत्तेण पुहत्तेण खन्धा य परमाणुणो। लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उ खेत्तओ॥ इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउब्विहं॥ परमाणुओं के एकत्व होने से स्कन्ध होते हैं । स्कन्ध के पृथक् होने से परमाणु होते हैं। यह द्रव्य की अपेक्षा से है। क्षेत्र की अपेक्षा से वे स्कन्ध आदि लोक के एक देश से लेकर सम्पूर्ण लोक तक में भाज्य हैं-असंख्य विकल्पात्मक हैं। यहाँ से आगे स्कन्ध और परमाणु के काल की अपेक्षा से चार भेद कहता हूँ। स्कन्ध आदि प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति (प्रतिनियत एक क्षेत्र में स्थित रहने) की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। १२. संतइं पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ १३. असंखकालमुक्कोसं एग समयं जहनिया ॥ अजीवाण य रूवीणं ठिई एसा वियाहिया। १४. अणन्तकालमुक्कोसं एगं समयं जहन्नयं। अजीवाण य रूवीणं अन्तरेयं वियाहियं ॥ रूपी अजीवों-पुद्गल द्रव्यों की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल की बताई गई है। रूपी अजीवों का अन्तर (अपने पूर्वावगाहित स्थान से च्युत होकर फिर वापस वहीं आने तक का काल) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से स्कन्ध आदि का परिणमन पाँच प्रकार का है। १५. वण्णओ गन्धओ चेव रसओ फासओ तहा। संजाणओ य विनेओ परिणामो तेसि पंचहा॥ १६. वण्ण परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया हालिद्दा सुक्किला तहा।। जो स्कन्ध आदि पुद्गल वर्ण से परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के हैं—कृष्ण, नील, लोहित-रक्त, हारिद्र,-पीत और शुक्ल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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