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________________ ३६-जीवाजीव-विभक्ति ३८३ जो पुद्गल गन्ध से परिणत हैं, वे दो प्रकार के हैं—सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध। जो पदगल रस से परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के हैं-तिक्त–तीता, कटु, कषाय-कसैला, अम्ल-खट्टा और मधुर। __ जो पुद्गल स्पर्श से परिणत हैं, वे आठ प्रकार के हैं-कर्कश, मृदु, गुरु, लघु (हलका)। १७. गन्धओ परिणया जे उ दुविहा ते वियाहिया। सुब्भिगन्धपरिणामा दुन्भिगन्धा तहेव य॥ १८. रसओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। तित्त-कडुय-कसाया अम्बिला महुरा तहा।। १९. फासओ परिणया जे उ अट्टहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउया चेव गरुया लहुया तहा। २०. सीया उण्हा य निद्धा य तहा लुक्खा व आहिया। इइ फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया। २१. संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया। परिमण्डला य वट्टा तंसा चउरंसमायया ॥ २२. वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥ २३. वण्णओ जे भवे नीले भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥ शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । इस प्रकार ये स्पर्श से परिणत पुद्गल कहे गये हैं। जो पुद्गल संस्थान से परिणत हैं, वे पाँच प्रकार के हैं—परिमण्डल, वृत्त, यस्र-त्रिकोण, चतुरस्र-चौकोर और आयत-दीर्घ । जो पुद्गल वर्ण से कृष्ण है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य है-अर्थात् अनेक विकल्पों वाला है। जो पुद्गल वर्ण से नील है, वह गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से भाज्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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