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________________ ३६-जीवाजीव-विभक्ति ३८१ अरूपी अजीव ५. धम्मत्थिकाए तद्देसे तप्पएसे य आहिए। अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए। धर्मास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश। अधर्मास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश। आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए। अद्धासमए चेव अरूवी दसहा भवे॥ आकाशास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश। और एक अद्धा समय (काल)-ये दस भेद अरूपी अजीव के हैं। ७. धम्माधम्मे य दोऽवेए लोगमित्ता वियाहिया। लोगालोगे य आगासे समए समयखेत्तिए। ____ धर्म और अधर्म लोक-प्रमाण हैं। आकाश लोक और अलोक में व्याप्त है। काल केवल समय-क्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र) में ही है। धम्माधम्मागासा तिन्नि वि एए अणाइया। अपज्जवसिया चेव सव्वद्धं तु वियाहिया॥ ____धर्म, अधर्म, आकाश-ये तीनों द्रव्य अनादि, अपर्यवसित-अनन्त और सर्वकाल-नित्य है। समए वि सन्तइं पप्प एवमेवं वियाहिए। आएसं पप्प साईए सपज्जवसिए वि य॥ प्रवाह की अपेक्षा से समय भी अनादि अनन्त है। आदेश अर्थात् प्रतिनियत व्यक्ति रूप एक-एक क्षण की अपेक्षा से सादि सान्त है। रूपी अजीव रूपी द्रव्य के चार भेद हैंस्कन्ध, स्कन्ध-देश, स्कन्ध-प्रदेश और परमाणु। १०. खन्धा य खन्धदेसा य तप्पएसा तहेव य। परमाणुणो य बोद्धव्वा रूविणो य चउबिहा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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