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उत्तराध्ययन सूत्र
५१. तेण परं वोच्छामि इससे आगे भवनपति, व्यन्तर,
तेउलेसा जहा सुरगणाणं। ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की भवणवइ-वाणमन्तर- तेजोलेश्या की स्थिति का निरूपण
जोइस-वेमाणियाणं च ॥ करूँगा। ५२. पलिओवमं जहन्ना तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति एक
उक्कोसा सागरा उ दण्हऽहिया। पल्योपम है और उत्कृष्ट स्थिति पलियमसंखेज्जेणं
पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग होई भागेण तेऊए। अधिक दो सागर है । ५३. दस वाससहस्साइं तेजो लेश्या की जघन्य स्थिति दस
तेऊए ठिई जहन्निया होइ। हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट स्थिति दुण्णुदही पलिओवम पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग
असंखभागं च उक्कोसा। अधिक दो सागर है। ५४. जा तेऊए ठिई खलु तेजोलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति
उक्कोसा सा उसमयमब्भहिया। है, उससे एक समय अधिक पद्म जहन्नेणं पम्हाए दस उ लेश्या की जघन्य स्थिति है और मुहुत्तहियाइं च उक्कोसा। उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक दस
सागर है। ५५. जा पम्हाए ठिई खलु . जो पद्म लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति
उक्कोसा साउ समयमब्भहिया। है, उससे एक समय अधिक शुक्ल जहन्नेणं
सक्काए लेश्या की जघन्य स्थिति है, और
• उत्कृष्ट स्थिति एक महर्त-अधिक तेतीस
तेत्तीस-मुहत्तमब्भहिया ॥
सागर है।।
गति द्वार५६. किण्हा नीला काऊ कृष्ण, नील और कापोत-ये
तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ। तीनों अधर्म लेश्याएँ हैं। इन तीनों से एयाहि तिहि वि जीवो जीव अनेक बार दुर्गति को प्राप्त होता
दुग्गइं उववज्जई बहुसो॥ है। ५७. तेऊ पम्हा सक्का तेजो-लेश्या, पद्म लेश्या और
तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ। शुक्ल-लेश्या-ये तीनों धर्म लेश्याएँ एयाहि तिहि वि जीवो हैं। इन तीनों से जीव अनेक बार सुग्गइं उववज्जई बहुसो॥ सुगति को प्राप्त होता है।
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