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३४-लेश्याध्ययन
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आर्य द्वार५८. लेसाहिं
सव्वाहिं प्रथम समय में परिणत सभी पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु। लेश्याओं से कोई भी जीव दूसरे भव न वि कस्सवि उववाओ में उपन्न नहीं होता।
परे भवे अस्थि जीवस्स ।। ५९. लेसाहिं सव्वाहिं अन्तिम समय में परिणत सभी
चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु। लेश्याओं से कोई भी जीव दूसरे भव न वि कस्सवि उववाओ में उत्पन्न नहीं होता।
परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ ६०. अन्तमुहुत्तम्मि गए लेश्याओं की परिणति होने पर
अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चेव। अन्तर् मुहूर्त व्यतीत हो जाता है और लेसाहि परिणयाहिं। जब अन्तर्मुहूर्त शेष रहता है, उस समय जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ जीव परलोक में जाते हैं।
उपसंहार६१. तम्हा एयाण लेसाणं अत: लेश्याओं के अनुभाग को
अणुभागे वियाणिया। जानकर अप्रशस्त लेश्याओं का अप्पसत्थाओ वज्जित्ता परित्याग कर प्रशस्त लेश्याओं में पसत्थाओ अहिट्ठज्जासि ॥ अधिष्ठित होना चाहिए।
-त्ति बेमि।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
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