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उत्तराध्ययन सूत्र
३६. मुहत्तद्धं तु जहन्ना
कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति तिण्णुदही पलियमसंख- अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट स्थिति
भागमब्भहिया। पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक उक्कोसा होइ ठिई तीन सागर है।
नायव्वा काउलेसाए॥ ३७. मुहत्तत्तद्धं तु जहन्ना
तेजो लेश्या की जघन्य स्थिति दोउदही पलियमसंख- अन्तर् मुहूर्त है और उत्कृष्ट स्थिति
भागमब्भहिया। पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक उक्कोसा होइ ठिई दो सागर है।
नायव्वा तेउलेसाए। ३८. मुहत्तद्धं तु जहन्ना पद्म लेश्या की जघन्य स्थिति
दस होन्ति सागरा मुहत्तऽहिया। अन्तर्-मुहूर्त है और उत्कृष्ट स्थिति एक उक्कोसा होइ ठिई मुहूर्त-अधिक दस सागर है।
नायव्वा पम्हलेसाए। ३९. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना शक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति
तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया। अन्तर् मुहूर्त है और उत्कृष्ट स्थिति उक्कोसा होइ ठिई ___ मुहूर्त-अधिक तेतीस सागर है। नायव्वा सुक्कलेसाए । एसा खलु लेसाणं गति की अपेक्षा के बिना यह ओहेण ठिई उ वण्णिया होई। लेश्याओं की ओघ-सामान्य स्थिति है। चउसु वि गईसु एत्तो
अब चार गतियों की अपेक्षा से
लेश्याओं की स्थिति का वर्णन लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ।।
करूँगा। ४१. दस वाससहस्साई कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति
काऊए ठिई जहन्निया होइ।। दस हजार-वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति तिण्णुदही पलिओवम- पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक
असंखभागं च उक्कोसा। तीन सागर है। ४२. तिण्णुदही पलिय- नील लेश्या की जघन्य स्थिति
मसंखभागा जहन्नेण नीलठिई। पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस उदही पलिओवम- तीन सागर है और उत्कृष्ट स्थिति असंखभागं च उक्कोसा ॥ पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक
दस सागर है।
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