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३४-लेश्याध्ययन
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स्पर्श द्वार१८. जह करगयस्स फासो क्रकच (करवत), गाय की जीभ
गोजिब्भाए व सागपत्ताणं । और शाक वृक्ष के पत्रों का स्पर्श जैसे एत्तो वि अणन्तगुणो कर्कश होता है, उससे अनन्त गुण लेसाणं अप्पसत्थाणं ।। अधिक कर्कश स्पर्श तीनों अप्रशस्त
लेश्याओं का है। १९. जह बूरस्स व फासो बूर (वनस्पतिविशेष), नवनीत,
नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं। सिरीष के पुष्पों का स्पर्श जैसे कोमल एतो वि अणन्तगणो होता है, उससे अनन्त गुण अधिक पसत्थलेसाण तिण्हं पि॥ कोमल स्पर्श तीनों प्रशस्त लेश्याओं
का है।
परिणाम द्वार२०. तिविहो व नवविहो वा लेश्याओं के तीन, नौ, सत्ताईस,
सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा। इक्कासी अथवा दो-सौ तेंतालीस दसओ तेयालो वा परिणाम (जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट आदि) लेसाणं होइ परिणामो॥ होते हैं।
लक्षण द्वार२१. पंचासवप्पवत्तो
जो मनुष्य पाँच आश्रवों में प्रवृत्त तीहि अगुत्तो छसुंअविरओ य। है, तीन गुप्तियों में अगुप्त है, षट्काय तिव्वारम्भपरिणओ
में अविरत है, तीव्र आरम्भ में हिंसा सुद्दो साहसिओ नरो। आदि में संलग्न है, क्षुद्र है, साहसी
अर्थात् अविवेकी है२२. निद्धन्धसपरिणामो
नि:शंक परिणाम वाला है, नृशंस निस्संसो अजिइन्दिओ। (क्रूर) है, अजितेन्द्रिय है—इन सभी एयजोगसमाउत्तो
योगों से युक्त है, वह कृष्ण लेश्या में किण्हलेसं तु परिणमे ॥ परिणत होता है। २३. इस्सा-अमरिस-अतवो
जो ईर्ष्यालु है, अमर्ष-कदाग्रही अविज्ज-माया अहीरिया य। है, अतपस्वी है, अज्ञानी है, मायावी है, गेद्धी पओसे ग सढे लज्जा रहित है, विषयासक्त है, द्वेषी है, पमत्ते रसलोलुए सायगवेसए य॥ धूर्त है, प्रमादी है, रस-लोलुप है, सुख
का गवेषक है
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