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________________ ३६४ ११. जह तिगडुयस्स य रसो तिक्खो जह हत्यिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ नीलाए नायव्वो । १२. जह तरुण अम्बगरसो तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ । वि अणन्तगुणो रसो उ काऊए नायव्वो । १३. जह परिणयम्बगरसो पके हुए आम और पके हुए पक्ककविठस्स बावि जारिसओ । कपित्थ का रस जितना खट-मीठा होता एत्तो वि अणन्तगुणो है, उससे अनन्त गुण अधिक खटरसो उ तेऊए नायव्वो ॥ मीठा तेजोलेश्या का रस है 1 १५. खज्जूर- मुद्दियरसो १४. वरवारुणीए रसो उत्तम सुरा, फूलों से बने विविध विविहाण व आसवाण जारिसओ । आसव, मधु (मद्यविशेष), तथा मैरेयक महु-मेरगस्स व रसो (सरका) का रस जितना अम्ल - कसैला तो पम्हाए होता है, उससे अनन्त गुण अधिक परएणं । अम्ल - कसैला पद्म लेश्या का रस है । खीररसो खण्ड- सक्कर रसो वा । एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ सुक्काए नायव्वो । तो साणं व उत्तराध्ययन सूत्र त्रिकटु और गजपीपल का रस जितना तीखा है, उससे अनन्त गुण अधिक तीखा नोल लेश्या का रस 1 गन्ध द्वार १६. जह गोमस्स गन्धो गाय, कुत्ते और सर्प के मृतक सुणगमडगस्स व जहा अहिमडस्स । शरीर की जैसे दुर्गन्ध होती है, उससे वि अन्तगुणो अनन्त गुण अधिक दुर्गन्ध तीनों अप्रशस्त लेश्याओं की होती है । अप्पसत्थाणं ॥ १७. जह सुरहिकुसुमगन्धो गन्धवासाण पिस्समाणाणं । एतो वि पसत्यलेसाण तिण्हं पि । कच्चे आम और कच्चे कपित्थ का रस जैसे कसैला होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कसैला कापोत लेश्या का रस है । Jain Education International खजूर, मृद्वीका (दाख), क्षीर, खाँड और शक्कर का रस जितना मीठा होता है उससे अनन्त गुण अधिक मीठा शुक्ल- लेश्या का रस है । सुगन्धित पुष्प और पीसे जा रहे सुगन्धित पदार्थों की जैसी गन्ध है, उससे अनन्त गुण अधिक सुगन्ध तीनों प्रशस्त लेश्याओं की हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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