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११. जह तिगडुयस्स य रसो तिक्खो जह हत्यिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ नीलाए नायव्वो ।
१२. जह
तरुण अम्बगरसो
तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ । वि अणन्तगुणो
रसो उ काऊए नायव्वो ।
१३. जह
परिणयम्बगरसो
पके हुए आम और पके हुए पक्ककविठस्स बावि जारिसओ । कपित्थ का रस जितना खट-मीठा होता एत्तो वि अणन्तगुणो है, उससे अनन्त गुण अधिक खटरसो उ तेऊए नायव्वो ॥ मीठा तेजोलेश्या का रस है
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१५. खज्जूर- मुद्दियरसो
१४. वरवारुणीए
रसो उत्तम सुरा, फूलों से बने विविध विविहाण व आसवाण जारिसओ । आसव, मधु (मद्यविशेष), तथा मैरेयक महु-मेरगस्स व रसो (सरका) का रस जितना अम्ल - कसैला तो पम्हाए होता है, उससे अनन्त गुण अधिक परएणं । अम्ल - कसैला पद्म लेश्या का रस है ।
खीररसो खण्ड- सक्कर रसो वा । एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ सुक्काए नायव्वो ।
तो
साणं
व
उत्तराध्ययन सूत्र
त्रिकटु और गजपीपल का रस जितना तीखा है, उससे अनन्त गुण अधिक तीखा नोल लेश्या का रस
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गन्ध द्वार
१६. जह गोमस्स
गन्धो
गाय, कुत्ते और सर्प के मृतक सुणगमडगस्स व जहा अहिमडस्स । शरीर की जैसे दुर्गन्ध होती है, उससे वि अन्तगुणो अनन्त गुण अधिक दुर्गन्ध तीनों अप्रशस्त लेश्याओं की होती है ।
अप्पसत्थाणं ॥
१७. जह
सुरहिकुसुमगन्धो गन्धवासाण पिस्समाणाणं । एतो वि पसत्यलेसाण तिण्हं पि ।
कच्चे आम और कच्चे कपित्थ का रस जैसे कसैला होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कसैला कापोत लेश्या का रस है ।
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खजूर, मृद्वीका (दाख), क्षीर, खाँड और शक्कर का रस जितना मीठा होता है उससे अनन्त गुण अधिक मीठा शुक्ल- लेश्या का रस है ।
सुगन्धित पुष्प और पीसे जा रहे सुगन्धित पदार्थों की जैसी गन्ध है, उससे अनन्त गुण अधिक सुगन्ध तीनों प्रशस्त लेश्याओं की हैं।
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