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३४-लेश्याध्ययन
नीला-ऽसोगसंकासा चासपिच्छसमप्पभा । वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ।
नील लेश्या का वर्ण-नील अशोक वृक्ष, चास पक्षी के पंख और स्निग्ध वैडूर्य मणि के समान (नीला)
६. अयसीपुष्फसंकासा
कोइलच्छदसनिभा। पारेवयगीवनिभा काउलेसा उ वण्णओ॥
कापोत लेश्या का वर्ण-अलसी के फूल, कोयल के पंख और कबूतर की ग्रीवा के वर्ण के समान (कुछ काला और कुछ लाल-जैसा) मिश्रित है।
हिंगुलुयधाउसंकासा तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुण्ड-पईवनिभा तेउलेसा उ वण्णओ।।
तेजोलेश्या का वर्ण-हिंगुल, धातु-गेरू, उदीयमान तरुण सूर्य, तोते की चोंच, प्रदीप की लौ के समान (लाल) होता है।
हरियालभेयसंकासा हलिद्दाभेयसंनिभा। सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ।
पदम लेश्या का वर्ण-हरिताल और हल्दी के खण्ड, तथा सण और असन के फूल के समान (पीला) है।
संखंककुन्दसंकासा खीरपूरसमप्पभा। रययहारसंकासा सुक्कलेसा उ वण्णओ।
शुक्ल लेश्या का वर्ण-शंख, अंकरत्न (स्फटिक जैसा श्वेत रत्नविशेष), कुन्द-पुष्प, दुग्ध-धारा, चांदी के हार के समान (श्वेत) है।
रस द्वार
१०. जह कडुयतुम्बगरसो कडुवा, तूम्बा, नीम तथा कड़वी
निम्बरसो कडुयरोहिणिरसोवा। रोहिणी का रस जितना कडुवा होता है, एतो वि अणन्तगुणो उससे अनन्त गुण अधिक कडुवा कृष्ण रसो उ किण्हाए नायव्वो। लेश्या का रस है।
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