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________________ चउतीसइमं अज्झयणं : चतुस्त्रिंश अध्ययन लेसज्झयणं : लेश्याध्ययन लेसज्झयणं पवक्खामि आणुपुल्विं जहक्कम । छण्हं पि कम्मलेसाणं अणुभावे सुणेह मे॥ नामाइं वण्ण-रस-गन्धफास-परिणाम-लक्खणं। ठाणं ठिइं गई चाउं लेसाणं तु सुणेह मे ॥ हिन्दी अनुवाद मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार लेश्याअध्ययन का निरूपण करूँगा। मुझसे तुम छहों लेश्याओं के अनुभावोंरस-विशेषों को सुनो। लेश्याओं के नाम, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयुष्य को मुझसे सुनो। किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य। सुक्कलेसा य छट्ठा उ नामाइं तु जहक्कमं॥ नाम द्वारक्रमश: लेश्याओं के नाम इस प्रकार हैं-कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल। ४. जीमूयनिद्धसंकासा गवलऽरिट्ठगसनिभा । खंजणंजण-नयणनिभा किण्हलेसा उ वण्णओ॥ वर्ण द्वार कृष्ण लेश्या का वर्ण स्निग्ध अर्थात् सजल मेघ, महिष, श्रृंग, अरिष्टक (द्रोणकाक अथवा अरिष्ट फल-रीठा) खंजन, अंजन और नेत्रतारिका के समान (काला) है। ३६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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