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उत्तराध्ययन सूत्र
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटि-कोटि सागरोपम की है। और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है।
आय-कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है ; और जघन्य स्थिति अन्र्तमुहूर्त की है।
२१. उदहीसरिनामाणं
सत्तरं कोडिकोडिओ। मोहणिज्जस्स उक्कोसा
अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ २२. तेत्तीस सागरोवमा
उक्कोसेण वियाहिया। ठिई उ आउकम्मस्स
अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥ २३. उदहीसरिनामाणं
वीसई कोडिकोडिओ। नामगोत्ताणं उक्कोसा
अट्ठमुहुत्ता जहन्निया॥ २४. सिद्धाणऽणन्तभागो य
अणुभागा हवन्ति । सव्वेसु वि पएसग्गं सव्वजीवेसुऽइच्छियं ॥
नाम और गोत्र-कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटि-कोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की
सिद्धों के अनन्तवें भाजितने कर्मों के अनुभाग (रस विशेष) हैं। सभी अनुभागों का प्रदेश-परिमाण सभी भव्य और अभव्य जीवों से अतिक्रान्त है, अधिक है। ___इसलिए इन कर्मों के अनुभागों को जानकर बुद्धिमान् साधक इनका संवर और क्षय करने का प्रयत्न करे।
२५. तम्हा एएसि कम्माणं
अणुभागे वियाणिया। एएसिं संवरे चेव खवणे य जए बुहे॥
-त्ति बेमि।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
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