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________________ तेत्तीसइमं अज्झयणं : त्रयस्त्रिंश अध्ययन ___ कम्मपयडी : कर्म-प्रकृति १. हिन्दी अनुवाद मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार आठ कर्मों का वर्णन करूँगा, जिनसे बँधा हुआ यह जीव संसार में परिवर्तनपरिभ्रमण करता है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोह तथा आयु कर्म नाम-कर्म, गोत्र और अन्तराय संक्षेप से ये आठ कर्म हैं। अट्ठ कम्माई वोच्छामि आणुपुट्विं जहक्कमं। जेहिं बद्धो अयं जीवो संसारे परिवत्तए । नाणस्सावरणिज्जं दंसणावरणं तहा। वेयणिज्जं तहा मोहं आउकम्मं तहेव य॥ नामकम्मं च गोयं च अन्तरायं तहेव य। एवमेयाइ कम्माई अट्टेव उ समासओ॥ नाणावरणं पंचविहं सयं आभिणिबोहियं। ओहिनाणं तइयं। मणनाणं च केवलं ॥ निदा तहेव पयला निद्दानिद्दा य पयलपयला य। तत्तो य थीणगिद्धी उ पंचमा होइ नायव्वा॥ ज्ञानावरण कर्म पाँच प्रकार का है-श्रुत-ज्ञानावरण, आभिनिबोधिकज्ञानावरण, अवधि-ज्ञानावरण, मनोज्ञानावरण, और केवल-ज्ञानावरण। निद्रा, प्रचला, निद्रा-निद्रा, प्रचला प्रचला और पाँचवीं स्त्यानगृद्धि । ३५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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