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________________ ३२- प्रमाद - स्थान ७९. फासाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणेगरूवे । चित्तेंहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्टगुरू किलिट्टे ॥ ८०. फासाणुवाएण परिगण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ८१. फासे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ८२. तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वड्डुइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से | । ८३. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले यदुही दुरन्ते एवं अदत्ताणि समाययन्तो फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो || ८४. फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? तत्यो भोगे वि किलेस दुक्खं निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ॥ Jain Education International ३४९ स्पर्श की आशा का अनुगामी अनेक रूप त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है । अपने प्रयोजन को ही मुख्य मानने वाला क्लिष्ट अज्ञानी विविध प्रकार से उन्हें परिताप देता है, पीड़ा पहुँचाता है। स्पर्श में अनुरक्ति और ममत्त्व के कारण स्पर्श के उत्पादन में, संरक्षण में, संनियोग में, तथा व्यय और वियोग में उसे सुख कहाँ ? उसे उपभोग- काल में भी तृप्ति नहीं मिलती है I स्पर्श में अतृप्त तथा परिग्रह में आसक्त और उपसक्त व्यक्ति संतोष को प्राप्त नहीं होता है । वह असंतोष के दोष से दुःखी और लोभ से व्याकुल होकर दूसरों की वस्तुएँ चुराता है 1 स्पर्श और परिग्रह में अतृप्त तथा तृष्णा से अभिभूत वह दूसरों की वस्तुओं का अपहरण करता है। लोभ के दोष से उसका कपट और झूठ बढ़ता है 1 कपट और झूठ से भी वह दुःख से मुक्त नहीं हो पाता है । झूठ बोलने के पहले, उसके बाद और बोलने के समय में भी वह दु:खी होता है । उसका अन्त भी दुःख रूप । इस प्रकार रूप में अतृप्त होकर वह चोरी करने वाला दुःखी और 'आश्रयहीन हो जाता है । इस प्रकार स्पर्श में अनुरक्त पुरुष को कहाँ, कब, कितना सुख होगा ? जिसे पाने के लिए दुःख उठाया जाता है, उसके उपभोग में भी क्लेश और दुःख ही होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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