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बत्तीसइमं अज्झयणं : द्वात्रिंश अध्ययन
पमायट्ठाणं : प्रमाद-स्थान
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मूल
हिन्दी अनुवाद अच्चन्तकालस्स समूलगस्स अत्यन्त (अनन्त अनादि) काल से सव्वस्स दक्खस्स उजो पमोक्खो। सभी दुःखों और उनके मूल कारणों से तं भासओ मे पडिपण्णचित्ता मुक्ति का उपाय मैं कह रहा हूँ। उसे सुणेह एगंतहियं हियत्थं ॥ पूरे मन से सुनो। वह एकान्त हितरूप
है, कल्याण के लिए है। नाणस्स सव्वस्स पगासणाए सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाशन से, अज्ञान अन्नाण-मोहस्स विवज्जणाए। और मोह के परिहार से, राग-द्वेष के रागस्स दोसस्स य संखएणं पूर्ण क्षय से—जीव एकान्त सुख-रूप एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ मोक्ष को प्राप्त करता है। तस्सेस मग्गो गुरु-विद्धसेवा गुरुजनों की और वृद्धों की सेवा विवज्जणा बालजणस्स दूरा। करना, अज्ञानी लोगों के सम्पर्क से दूर सज्झाय-एगन्तनिसेवणा य रहना, स्वाध्याय करना, एकान्त में सुत्तऽत्यसंचिन्तणया धिई य॥ निवास करना, सूत्र और अर्थ का
चिन्तन करना, धैर्य रखना, यह दुःखों से
मुक्ति का उपाय है। ४. आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं अगर श्रमण तपस्वी समाधि की
सहायमिच्छे निउणस्थबुद्धि। आकांक्षा रखता है तो वह परिमित निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं । और एषणीय आहार की इच्छा करे, समाहिकामे समणे तवस्सी॥ तत्त्वार्थों को जानने में निपुण बुद्धिवाला
साथी खोजे, तथा स्त्री आदि से विवेक के योग्य---एकान्त घर में निवास करे।
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