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________________ ३३२ १३. गाहासोलसएहिं तहा असंजमम्मि य । जे भिक्खू जयइ निच्चं से न अच्छइ मण्डले । १४. बम्भम्मि नायज्झयणेसु ठाणेसु य समाहिए । जे भिक्खू जयई निच्वं से न अच्छइ मण्डले । १५. एगवीसाए परीसहे । बावीसाए जे भिक्खु जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १६. तेवीसइ सूयगडे रूवाहिएसु सुरेस अ । जे भिक्खू जयई निच्वं से न अच्छ मण्डले । सबलेसु १७. पणवीस - भावणाहिं उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्वं से न अच्छ मण्डले । १८. अणगारगुणेहिं च पकप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले । १९. पावसुयपसंगेसु मोहट्ठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र गाथा - षोडशक में और असंयम में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है 1 ब्रह्मचर्य में, ज्ञात अध्ययनों में, असमाधि स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । इक्कीस शबल दोषों में और बाईस परीषहों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों में, रूपाधिक अर्थात् चौबीस देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता वह संसार में नहीं रुकता है । पच्चीस भावनाओं में, दशा आदि ( दशाश्रुत स्कन्ध, व्यवहार और बृहत्कल्प) के उद्देश्यों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है 1 अनगार-गुणों में और तथैव प्रकल्प (आचारांग) के २८ अध्ययनों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । पाप - श्रुत-प्रसंगों में और मोहस्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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