________________
३१-चरण-विधि
३३१
६. विगहा-कसाय-सन्नाणं
झाणाणं च दुयं तहा। जे भिक्खू वज्जई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥
७. वएसु इन्दियत्थेसु
समिईसु किरियासु य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ लेसासु छसु काएसु छक्के आहारकारणे। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। पिण्डोग्गहपडिमासु भयट्ठाणे सु सत्तसु। जे भिक्खू जयई निच्चं
से न अच्छइ मण्डले॥ १०. मयेसु बम्भगुत्तीसु
भिक्खुधम्ममि दसविहे। जे भिक्खू जयई निच्चं
से न अच्छइ मण्डले॥ ११. उवासगाणं पडिमासु
भिक्खूणं पडिमासु य। जे भिक्खू जयई निच्चं
से न अच्छइ मण्डले ॥ १२. किरियासु भूयगामेसु
परमाहम्मिएसु य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले॥
जो भिक्ष विकथाओं का, कषायों का, संज्ञाओं का और आर्तध्यान तथा रौद्रध्यान-दो ध्यानों का सदा वर्जनत्याग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
जो भिक्षु व्रतों और समितियों के पालन में तथा इन्द्रिय-विषयों और क्रियाओं के परिहार में सदा यत्नशील रहता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
जो भिक्षु छह लेश्याओं, पृथ्वी कार्य आदि छह कायों और आहार के छह कारणों में सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
पिण्डावग्रहों में, आहार ग्रहण की सात प्रतिमाओं में और सात भयस्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है। ____मद-स्थानों में, ब्रह्मचर्य की गुप्तियों में और दस प्रकार के भिक्षुधर्मों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
उपासकों की प्रतिमाओं में, भिक्षुओं की प्रतिमाओं में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
क्रियाओं में, जीव-समुदायों में और परमाधार्मिक देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org