________________
३१-चरण-विधि
३३३
२०. सिद्धाइगुणजोगेसु
तेत्तीसासायणासु य। जे भिक्खू जयई निच्चं
से न अच्छइ मण्डले॥ २१. इइ एएसु ठाणेसु
जे भिक्ख जयई समा। खिप्पं से सव्वसंसारा विष्पमुच्चइ पण्डिओ॥
-त्ति बेमि।
सिद्धों के ३१ अतिशायी गुणों में, योग-संग्रहों में, तैंतीस आशातनाओं में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
इस प्रकार जो पण्डित भिक्षु इन स्थानों में सतत उपयोग रखता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता
-ऐसा मैं कहता हूँ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org