SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० ० - तपो - मार्ग - गति मोरुसीणं asहं पिउ जत्तिओ भवे कालो । चरमाणो खलु एवं कालोमाणं मुणेयवो ॥ २०. दिवसस्स २१. अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसन्तो । वा चभागूणाए एवं कालेण ऊ भवे ॥ विसेसेणं वणेणं भावमणुमुयन्ते उ । चरमाणो खलु भावोमाणं मुणेयव्वो ॥ एवं २२. इत्थी वा पुरिसो वा स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत अथवा अलंकिओ वाऽणलंकिओ वा वि । अनलंकृत, विशिष्ट आयु और अमुक अन्नयरवयत्थो वा वर्ण के वस्त्र— अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥ २३. अन्नेण खेत्ते काले भावम्मि य आहिया उ जे भावा । ओमचरओ एएहि पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥ २५. अट्ठविहगोयरगं तु तहा सत्तेव एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया 11 २४. दव्वे २६. खीर - दहि- सप्पिमाई पणीयं पाणभोयणं । परिवज्जणं रसाणं तु भणिय रसविवज्जणं ॥ ३२५ दिवस के चार प्रहर होते हैं। उन चार प्रहरों में भिक्षा का जो नियत समय है, तदनुसार भिक्षा के लिए जाना, यह काल से 'ऊणोदरी' तप है । Jain Education International अथवा कुछ (चतुर्थ भाग आदि) भाग- न्यून तृतीय प्रहर में भिक्षा की एषणा करना, काल की अपेक्षा से 'ऊणोदरी' तप है । अथवा अमुक विशिष्ट वर्ण एवं भाव से युक्त दाता से ही भिक्षा ग्रहण करना, अन्यथा नहीं -- इस प्रकार की चर्या वाले मुनि को भाव से 'ऊणोदरी' तप है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में जो-जो पर्याय (भाव) कथन किये हैं, उन सबसे ऊणोदरी तप करने वाला 'पर्यवचरक' होता है । आठ प्रकार के गोचराय, सप्तविध एषणाएँ और अन्य अनेक प्रकार के अभिग्रह - 'भिक्षाचर्या' तप है 1 दूध, दही, घी आदि प्रणीत ( पौष्टिक ) पान, भोजन तथा रसों का त्याग, 'रसपरित्याग' तप 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy