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सपरिकम्मा
अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमणीहारी आहारच्छेओ य दोसु वि ॥
१३. अहवा
१४. ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहिय । दव्वओ खेत्त-कालेणं भावेणं पज्जवेहि य ॥
१५. जो जस्स उ आहारो
तत्तो ओमं तु जो करे । जहनेणेगसित्थाई एवं वेण
१६. गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली । खेडे कब्बड - दोणमुहपट्टण - मडम्ब - संबाहे ॥
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१७. आसमपए
विहारे
सन्निवेसे समाय- घोसे य । थलि - सेणाखन्धारे सत्थे संवट्ट कोट्टे य ॥ १८. वाडेसु व रच्छासु व
घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पइ उ माई एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥
१९. पेडा
य अद्धपेडा गोमुत्ति पयंगवीहिया चेव । सम्बुकावट्टा SS ययगन्तुं पच्चागया
छट्ठा ॥
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उत्तराध्ययन सूत्र
अथवा मरणकाल अनशन के सपरिकर्म और अपरिकर्म ये दो भेद हैं ।
अविचार अनशन के निर्हारी और अनिर्हारी - ये दो भेद भी होते हैं दोनों में आहार का त्याग होता है ।
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संक्षेप में अवमौदर्य (ऊनोदरिका) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से पाँच प्रकार का है ।
जो जितना भोजन कर सकता है, उसमें से कम-से-कम एक सिक्थ अर्थात् एक कण तथा एक ग्रास आदि के रूप में कम भोजन करना, द्रव्य से 'ऊणोदरी' तप
है
I
ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड़, कर्वट, द्रोणमुख, पत्तन, मण्डप, संबाध
आश्रम - पद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिविर, सार्थ, संवर्त, कोट—
वाट — पाडा, रथ्या - गली और घर - इन क्षेत्रों में तथा इसी प्रकार के दूसरे क्षेत्रों में निर्धारित क्षेत्र - प्रमाण के अनुसार भिक्षा के लिए जाना, क्षेत्र से 'ऊणोदरी' तप है 1
अथवा पेटा, अर्ध-पेटा, गोमूत्रिका, पतंग-वीथिका, शम्बूकावर्ता और
आयतगत्वा प्रत्यागता —— यह छह प्रकार का क्षेत्र से 'ऊणोदरी' तप है ।
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