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उत्तराध्ययन सूत्र
सू० ६७–फासिन्दियनिग्गहेणं भन्ते! भन्ते ! स्पर्शन-इन्द्रिय के निग्रह से - जीवे किं जणयइ?
जीव को क्या प्राप्त होता है? ____ फासिन्दियनिग्गहेणं मणुन्ना- स्पर्शन-इन्द्रिय के निग्रह से जीव मणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्शों में होने जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ वाले राग-द्वेष का निग्रह करता है। पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।
फिर स्पर्श-निमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा
करता है। सू० ६८-कोहविजएणं भन्ते! जीवे भन्ते ! क्रोध-विजय से जीव को किं जणयइ?
क्या प्राप्त होता है? कोहविजएणं खन्ति जणयइ क्रोध-विजय से जीव क्षान्ति को कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ प्राप्त होता है। क्रोध-वेदनीय कर्म का पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।
बन्ध नहीं करता है। पूर्व-बद्ध कर्मों की
निर्जरा करता है। सू०६९-माणविजएणं भन्ते! जीवे भन्ते ! मान-विजय से जीव को किं जणयइ?
क्या प्राप्त होता है? माणविजएणं मद्दवं जणयइ ___मान-विजय से जीव मृदुता को माणवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ प्राप्त होता है। मान-वेदनीय कर्म का पुवबद्धं च निज्जरेइ।
बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की
निर्जरा करता है। सू० ७०-मायाविजएणं भन्ते! जीवे भन्ते ! माया-विजय से जीव को किं जणयइ?
क्या प्राप्त होता है? माया विजएणं उज्जुभावं जणयइ माया-विजय से ऋजुता को प्राप्त मायावेयणिज्ज कम्मं न बन्धइ __ होता है। माया-वेदनीय कर्म का बन्ध पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥
नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की
निर्जरा करता है। सू० ७१-लोभविजएणं भन्ते ! जीवे भन्ते ! लोभ-विजय से जीव को किं जणयइ?
क्या प्राप्त होता है? लोभविजएणं संतोसीभावं लोभ-विजय से जीव सन्तोष-भाव जणयइ, लोभवेयणिज्जं कम्मं न को प्राप्त होता है। लोभ-वेदनीय कर्म बन्धइ पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥ का बन्ध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों
की निर्जरा करता है।
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