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२९ - सम्यक्त्व - पराक्रम
सू० ६३ - सोइन्दियनिग्गहेणं, भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सोइन्दियनिग्गहेणं नेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणय तप्पच्चइयं कम्पं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।
मणुन्नामणु
सू० ६४ - चक्खिन्दियनिग्रहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? चक्खिन्दिय निग्गहेणं मणुन्नामणुनेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणय, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।
सू० ६५ - घाणिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? घाणिन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।
सू० ६६ - जिब्भिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? जिब्भिन्दियनिग्गणं मणुन्नामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्पं न बन्धइ पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।
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भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर तत्- प्रत्ययिक अर्थात् शब्दनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्व- बद्ध कर्मों की निर्जरा करता है 1
भन्ते ! चक्षुष - इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
चक्षुष - इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर रूपनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निजरा करता है ।
भन्ते ! घ्राण-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
घ्राण-इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर गन्धनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
भन्ते ! जिह्वा - इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
जिह्वा - इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर रसनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
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