________________
२९ - सम्यक्त्व - पराक्रम
सू० ५७ – मणसमाहारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
मणसमाहारणयाए णं एगग्गं जणयइ । एगग्गं जणइत्ता नाणपज्जवे नाणपज्जवे
जणइत्ता
जणयइ । सम्मत्तं विसोहेइ,
मिच्छत्तं
च
निज्जरेइ ।
सू० ५८ - वयसमाहारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
वयसमाहारणयाए णं वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहेइ । वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहेत्ता सुलभबो - हियत्तं निव्वत्ते, दुल्लहबोहियत्तं निज्जरेइ ।
सू० ५९ -कायसमाहारणयाए भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
णं
।
कायसमाहारणयाए णं चरितपज्जवे विसोहे | चरित्तपज्जवे विसोहेत्ता अहक्खायचरितं विसोहेइ अहक्खायचरितं विसोहेत्ता चत्तारि - केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छासिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परि निव्वाएड सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ।
Jain Education International
३१५
भन्ते ! मन की समाधारणा (मन को आगमोक्त भावों के चिन्तन में भली भाँति संलग्न रखने) से जीव को क्या प्राप्त होता है ।
मन की समाधारणा से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है ! एकाग्रता प्राप्त होकर ज्ञानपर्यवों को - ज्ञान के विविध तत्त्वबोधरूप प्रकारों को प्राप्त होता है । ज्ञानपर्यवों को प्राप्त होकर सम्यग् - दर्शन को विशुद्ध करता है और मिथ्या दर्शन की निर्जरा करता है ।
भन्ते ! वाक् समाधारणा (वचन को स्वाध्याय में भली भाँति संलग्न रखने) से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
वाक् समाधारणा से जीव वाणी के विषय भूत दर्शन के पर्यवों कोविविध प्रकारों को विशुद्ध करता है । वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करके से बोधि को सुलभता प्राप्त करता है । बोधि की दुर्लभता को क्षीण करता 1
I
भन्ते ! काय समाधारणा (संयम की शुद्ध प्रवृत्तियों में काया को भली-भाँति संलग्न रखने) से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
काय समाधारणा से जीव चारित्र के पर्यवों को- विविध प्रकारों को विशुद्ध करता है । चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करके यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करता है । यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करके केवलिसत्क वेदनीय आदि चार कर्मों का क्षय करता है । उसके बाद सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है। परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सब दुःखों का अन्त करता
1
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org