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उत्तराध्ययन सूत्र
३१४ सू० ५२-करणसच्चेणं भन्ते! जीवे
किं जणयइ?
भन्ते ! करण सत्य (कार्य की सचाई) से जीव को क्या प्राप्त होता
करणसच्चेणं करणसत्तिं जणयइ । करण सत्य से जीव करणशक्ति करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहावाई (प्राप्त कार्य को सम्यक्तया संपन्न करने तहाकारी यावि भवइ।
का सामर्थ्य) को प्राप्त होता है। करणसत्य में वर्तमान जीव 'यथावादी तथाकारी' (जैसा बोलता है, वैसा ही
करने वाला) होता है। स० ५३-जोगसच्चेणं भन्ते! जीवे भन्ते ! योग-सत्य से जीव को किं जणयइ?
क्या प्राप्त होता है ? जोगसच्चेणं जोगं विसोहेड़। योग सत्य से—मन वचन, और
काय के प्रयत्नों की सचाई से जीव
योग को विशुद्ध करता है। सू० ५४-मणगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे भन्ते ! मनोगुप्ति से जीव को क्या किं जणयइ?
प्राप्त होता है? मणगुत्तयाए णं जीवे एगग्गं मनोगुप्ति से जीव एकाग्रता को जणयइ। एगग्गचित्ते णं जीवे मण- प्राप्त होता है। एकाग्र चित्त वाला जीव गुत्ते संजमाराहए भवइ।
अशुभ विकल्पों से मन की रक्षा करता
है, और संयम का आराधक होता है। सू० ५५-वयगुत्तयाए णं भन्ते! जीवे भन्ते ! वचन गप्ति से जीव को किं जणयइ?
क्या प्राप्त होता है ? वयगुत्तयाए णं निम्वियारं वचनगुप्ति से जीव निर्विकार भाव जणयइ। निव्वियारे णं जीवे वइगुत्ते को प्राप्त होता है। निर्विकार जीव अज्झप्पजोगज्झाणगुत्ते यावि भवइ। सर्वथा वाग्गुप्त तथा अध्यात्म योग के
साधनभूतध्यान से युक्त होता है। सू० ५६-कायगुत्तयाए णं भन्ते! भन्ते ! कायगुप्ति से जीव को क्या जीवे किं जणयइ?
प्राप्त होता है ? कायगुत्तयाए णं संवरं जणयइ। काय गप्ति से जीव संवर संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासव- (अशुभ-प्रवृत्ति के निरोध) को प्राप्त निरोहं करेइ।
होता है। संवर से काय गुप्त होकर फिर से होने वाले पापाश्रव का निरोध करता है।
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