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________________ २९-सम्यक्त्व-पराक्रम ३१३ सू० ४७-खन्तीए णं भन्ते! जीवे किं भन्ते ! क्षान्ति (क्षमा, तितिक्षा) से जणयइ? जीव को क्या प्राप्त होता है ? खन्तीए णं परीसहे जिणइ। क्षान्ति से जीव परीषहों पर विजय प्राप्त करता है। सू० ४८-मुत्तीए णं भन्ते! जीवे किं भन्ते ! मुक्ति (निर्लोभता) से जीव जणयइ? को क्या प्राप्त होता है? मुत्तीए णं अकिंचणं जणयइ। मुक्ति से जीव अकिंचनता अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं (अपरिग्रह) को प्राप्त होता है। अपत्थणिज्जो भव। अकिंचन जीव अर्थ के लोभी जनों से अप्रार्थनीय हो जाता है। सू० ४९-अज्जवयाए णं भन्ते! जीवे भन्ते ! ऋजुता (सरलता) से जीव किं जणयइ? को क्या प्राप्त होता है? अज्जवयाए णं काउज्जुययं, ऋजुता से जीव काय की सरलता, भावुज्जुययं, भासुज्जुययं अविसंवायणं भाव (मन) की सरलता, भाषा की जणयइ। अविसंवायण-संपन्नयाए णं सरलता और अविसंवाद (अवंचकता) जीवे धम्मस्स आराहए भवइ। को प्राप्त होता है। अविसंवाद-सम्पन्न जीव धर्म का आराधक होता है। सू० ५०-मद्दवयाए णं भन्ते! जीवे भन्ते ! मृदुता से जीव को क्या कि जणयड? प्राप्त होता है? मद्दवयाए णं अणुस्सियत्तं मृदुता से जीव अनुद्धत भाव को जणयइ। अणुस्सियत्ते णं जीवे प्राप्त होता है। अनुद्धत जीव मिउमद्दवसंपन्ने अट्ट मयट्ठाणाई मृदु-मार्दवभाव से सम्पन्न होता है। निवेइ। आठ मद-स्थानों को विनष्ट करता है। सू० ५१-भावसच्चेणं भन्ते! जीवे भन्ते ! भाव-सत्य (अन्तरात्मा की किं जणयइ? सचाई) से जीव को क्या प्राप्त होता भावसच्चेणं भावविसोहिं भाव-सत्य से जीव भाव-विशुद्धि जणयइ। भावविसोहीए वट्टमाणे को प्राप्त होता है। भाव-विशुद्धि में जीवे अरहन्तपत्रत्तस्स धम्मस्स वर्तमान जीव अर्हतप्रज्ञप्त धर्म की आराहणयाए अब्भुढेइ। अरहन्त- आराधना में उद्यत होता है। पन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत अब्भुट्टित्ता परलोग-धम्मस्स आराहए होकर परलोक में भी धर्म का आराधक होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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