________________
२९-सम्यक्त्व-पराक्रम
३११
स० ४०-सहायपच्चक्खाणेणं भन्ते! भन्ते ! सहाय-प्रत्याख्यान से जीव ___ जीवे किं जणयइ?
को क्या प्राप्त होता है? सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं सहायता के प्रत्याख्यान से जीव जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एकीभाव को प्राप्त होता है। एकीभाव एगग्गं भावेमाणे अप्पसद्दे, अप्पझंझे, को प्राप्त साधक एकाग्रता की भावना अप्पकलहे, अप्पकसाए, अप्पतुमंतुमे, करता हुआविग्रहकारी शब्द, वाक्कलहसंजमबहुले, संवरबहुले, समाहिए झगड़ा-टंटा, क्रोधादि कषाय तथा तू, तू यावि भवइ।
मैं, मैं आदि से मुक्त रहता है। संयम
और संवर में व्यापकता प्राप्त कर समाधि-सम्पन्न होता है।
स० ४१-भत्तपच्चक्खाणेणं भन्ते! भन्ते ! भक्त प्रत्याख्यान (भक्त जीवे किं जणयइ?
परिज्ञानरूप आमरण अनशन, संथारा)
से जीव को क्या प्राप्त होता है ? - भत्तपच्चक्खाणेणं अणेगाइं भव- भक्त-प्रत्याख्यान से जीव अनेक सयाई निरुम्भइ।
प्रकार के सैकड़ों भवों का, जन्म-मरणों
का निरोध करता है। सू० ४२-सब्भावपच्चक्खाणेणं
भन्ते ! सद्भाव प्रत्याख्यान से भन्ते! जीवे किं जणयइ? जीव को क्या प्राप्त होता है ?
सब्भावपच्चक्खाणेणं अनियट्टि सद्भाव प्रत्याख्यान (सर्वसंवरजणयइ। अनियट्टिपडिवन्ने य अण- स्वरूप शैलेशी भाव) से जीव अनिवृत्ति गारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ। (शुक्ल-ध्यान का चतुर्थ भेद) को प्राप्त तं जहा-वेयणिज्जं, आउयं, नाम, होता है। अनिवृत्ति को प्राप्त अनगार गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ केवली के शेष रहे हुए वेदनीय, आयु, मुच्चइ परिनिव्वाएड सव्वदुक्खाण- नाम और गोत्र-इन चार भवोपग्राही मन्तं करेइ।
कर्मों का क्षय करता है। उसके पश्चात् वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सर्व दुःखों का अन्त करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org