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________________ २७- खलुंकीय एगो निवेस पडइ पासेणं निवज्जई । उक्कुद्दइ उफडई सढे बालगवी वए ॥ ६. माई मुद्धेण पडई कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं । मयलक्खेण चिट्टई वेगेण य पहावई । ७. छिन्नाले छिन्दई सेल्लि दुद्दन्तो भंजए जुगं । से विय सुस्सुयाइत्ता उज्जाहित्ता पलायए । ८. खलुंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि भज्जन्ति धिइदुब्बला ॥ ९. इड्डीगारविए गे एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे ॥ एगे एगे ओमाणभीरु थद्धे । एगं च अणसासम्मी हेऊहिं कारणेहि य ॥ १०. भिक्खालसिए Jain Education International २८३ कोई मार्ग के एक ओर पार्श्व ( बगल) में गिर पड़ता है, कोई बैठ जाता है, कोई लेट जाता है । कोई कूदता है, कोई उछलता है, तो कोई शठ बालगवी - तरुण गाय के पीछे भाग जाता है । कोई धूर्त बैल शिर को निढाल बनाकर भूमि पर गिर जाता है । कोई क्रोधित होकर प्रतिपथ - उन्मार्ग में चला जाता है । कोई मृतक - सा पड़ा रहता है, तो कोई वेग से दौड़ने लगता है । कोई छिन्नाल - दुष्ट बैल रास को छिन्न-भिन्न कर देता है । दुर्दान्त होकर जुए को तोड़ देता है । और सूँ-सूँ आवाज करके वाहन को छोड़कर भाग जाता है । अयोग्य बैल जैसे वाहन को तोड़ देते हैं, वैसे ही धैर्य में कमजोर शिष्यों को धर्म- यान में जोतने पर वे भी उसे तोड़ देते हैं । कोई ऋद्धि-ऐश्वर्य का गौरव (अहंकार) करता है, कोई रस का गौरव करता है, कोई सात - सुख का गौरव करता है, तो कोई चिरकाल तक क्रोध करता है । कोई भिक्षाचरी में आलस्य करता है, कोई अपमान से डरता है, तो कोई स्तब्ध है- धीठ है। हेतु और कारणों से गुरु कभी किसी को अनुशासित करता है तो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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