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________________ सत्तावीसइमं अज्झयणं : सप्तविंश अध्ययन खलुंकिज्ज : खलुंकीय मूल थेरे गणहरे गग्गे मुणी आसि विसारए। आइण्णे गणिभावम्मि समाहिं पडिसंधए। हिन्दी अनुवाद गर्ग कुल में उत्पन्न ‘गार्ग्य' मुनि स्थविर, गणधर और विशारद था, गुणों से युक्त था। गणि-भाव में स्थित था और समाधि में अपने को जोड़े हुए था। __ शकटादि वाहन को ठीक तरह वहन करने वाला बैल जैसे कान्तारजंगल को सुखपूर्वक पार करता है, उसी तरह योग-संयम में संलग्न मनि संसार को पार कर जाता है। वहणे वहमाणस्स कन्तारं अइवत्तई। जोए वहमाणस्स संसारो अइवत्तई॥ ३. खलुंके जो उ जोएड विहम्माणो किलिस्सई। असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से भज्जई॥ __ जो खलुक (दुष्ट) बैलों को जोतता है, वह उन्हें मारता हुआ क्लेश पाता है, असमाधि का अनुभव करता है और .अन्तत: उसका चाबुक भी टूट जाता है एगं डसइ पुच्छंमि एगं विन्धइऽभिक्खणं। एगो भंजइ समिलं एगो उप्पहपढिओ॥ वह क्षुब्ध हुआ वाहक किसी की पूँछ काट देता है, तो किसी को बार-बार बींधता है। और उन बैलों में से कोई एक समिला-जुए की कील को तोड़ देता है, तो दूसरा उन्मार्ग पर चल पड़ता है। २८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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