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________________ २७८ ४५. पोरिसीए चउत्थीए कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तओ कुज्जा अबोहेन्तो असंजए || ४६. पोरिसीए चउभाए वन्दिऊण तओ गुरुं । पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए । ४७. आगए कायवोस्सग्गे सव्वदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ४८. राइयं च अईयारं चिन्तिज्ज अणुपुव्वसो | नाणंमि दंसणंमी चरित्तंमि तवंमि य ॥ ४९. पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरुं । राइयं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कमं ।। ५०. पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ५१. किं तवं पडिवज्जामि एवं तत्थ विचिन्तए । काउस्सग्गं तु पारित्ता वन्दय तओ गुरुं ॥ Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र चौथे प्रहर में कालका प्रतिलेखन कर, असंयत व्यक्तियों को न जगाता हुआ स्वाध्याय करे । चतुर्थ प्रहर के चौथे भाग में गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण कर, काल का प्रतिलेखन करे । सब दुःखों से मुक्त करने वाले कायोत्सर्ग का समय होने पर सब दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से सम्बन्धित रात्र - सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे । कायोत्सर्ग को पूरा कर, गुरु को वन्दना करे । फिर अनुक्रम से रात्रिसम्बन्धी अतिचारों की आलोचना करे । प्रतिक्रमण कर, निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करे । तदनन्तर सब दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे । कायोत्सर्ग में चिन्तन करे कि “मैं आज किस तप को स्वीकार करूँ" । कायोत्सर्ग को समाप्त कर गुरु को वन्दना करे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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