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४५. पोरिसीए चउत्थीए कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तओ कुज्जा अबोहेन्तो असंजए ||
४६. पोरिसीए चउभाए वन्दिऊण तओ गुरुं । पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए ।
४७. आगए कायवोस्सग्गे
सव्वदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥
४८. राइयं च अईयारं चिन्तिज्ज अणुपुव्वसो | नाणंमि दंसणंमी चरित्तंमि तवंमि य ॥
४९. पारियकाउस्सग्गो
वन्दित्ताण तओ गुरुं । राइयं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कमं ।।
५०. पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥
५१. किं तवं पडिवज्जामि एवं तत्थ विचिन्तए । काउस्सग्गं तु पारित्ता वन्दय तओ गुरुं ॥
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उत्तराध्ययन सूत्र
चौथे प्रहर में कालका प्रतिलेखन कर, असंयत व्यक्तियों को न जगाता हुआ स्वाध्याय करे ।
चतुर्थ प्रहर के चौथे भाग में गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण कर, काल का प्रतिलेखन करे ।
सब दुःखों से मुक्त करने वाले कायोत्सर्ग का समय होने पर सब दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे ।
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से सम्बन्धित रात्र - सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे ।
कायोत्सर्ग को पूरा कर, गुरु को वन्दना करे । फिर अनुक्रम से रात्रिसम्बन्धी अतिचारों की आलोचना करे ।
प्रतिक्रमण कर, निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करे । तदनन्तर सब दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे ।
कायोत्सर्ग में चिन्तन करे कि “मैं आज किस तप को स्वीकार करूँ" । कायोत्सर्ग को समाप्त कर गुरु को वन्दना करे ।
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