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२६-सामाचारी
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कायोत्सर्ग पूरा होने पर गुरु को वन्दना करे । उसके बाद यथोचित तप को स्वीकार कर सिद्धों की स्तुति करे ।
५२. पारियकाउस्सग्गो
वन्दित्ताण तओ गुरूं। तवं संपडिवज्जेत्ता
करेज्ज सिद्धाण संथवं ॥ ५३. एसा सामायारी
समासेण वियाहिया। जं चरित्ता बह जीवा तिण्णा संसार-सागरं ॥
संक्षेप में यह सामाचारी कही है। इसका आचरण कर बहुत से जीव संसार-सागर को तैर गये हैं।
-त्ति बेमि।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
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