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________________ २६-सामाचारी २७७ ३८. पोरिसीए चउब्भाए वन्दित्ताण तओ गुरूं। पडिक्कमित्ता कालस्स सेज्जं तु पडिलेहए। पौरुषी के चौथे भाग में गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण (कायोत्सर्ग) कर शय्या का प्रतिलेखन करे। दैवसिक-प्रतिक्रमण___ यतना में प्रयत्नशील मुनि फिर प्रस्रवण और उच्चार-भूमिका प्रतिलेखन करे । उसके बाद सर्व दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सम्बन्धित दिवस-सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे। ३९. पासवणुच्चारभूमि च पडिलेहिज्ज जयं जई। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ४०. देसियं च अईयारं चिन्तिज्ज अणुपुव्वसो। नाणे य दंसणे चेव चरित्तम्मि तहेव य॥ ४१. पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरुं। देसियं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ।। ४२. पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरुं। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं॥ ४३. पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरुं। थुइमंगलं च काउण कालं संपडिलेहए। कायोत्सर्ग को पूर्ण करके गुरु को वन्दना करे। तदनन्तर अनक्रम से दिवस-सम्बन्धी अतिचारों की आलोचना करे। प्रतिक्रमण कर, निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करे। उसके बाद सब दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग पूरा करके गुरु को वन्दना करे। फिर स्तुतिमंगल (सिद्धस्तव) करके काल का प्रतिलेखन करे । ४४. पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई। तइयाए निद्दमोक्खं तु सज्झायं तु चउत्थिए । रात्रिक कृत्य एवं प्रतिक्रमण प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में पुन: स्वाध्याय करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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