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________________ २७६ उत्तराध्ययन सूत्र ३१. पुढवी-आउक्काए प्रतिलेखन में अप्रमत्त मुनि तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तसाणं। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, पडिलेहणआउत्तो वायुकाय, वनस्पतिकाय, तथा त्रस छण्हं आराहओ होइ॥ काय-छहों कायों का आराधक रक्षक होता है। तृतीय पौरुषी३२. तइयाए पोरिसीए छह कारणों में से किसी एक भत्तं पाणं गवेसए। कारण के उपस्थित होने पर तीसरे छण्हं अन्नयरागम्मि प्रहर में भक्तपान की गवेषणा करे । कारणमि सुमुट्ठिए।। ३३. वेयण-वेयावच्चे क्षुधा-वेदना की शान्ति के लिए, इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। वैयावृत्य के लिए, ईर्यासमिति के तह पाणवत्तियाए पालन के लिए, संयम के लिए, प्राणों छटुं पुण धम्मचिन्ताए ।। की रक्षा के लिए और धर्मचिंतन के लिए भक्तपान की गवेषणा करे। ३४. निग्गन्थो धिइमन्तो धृति-सम्पन्न साधु और साध्वी इन निग्गन्थी विन करेज्ज छहिं चेव। छह कारणों से भक्त-पान की गवेषणा ठाणेहिं उ इमेहिं न करे, जिससे संयम का अतिक्रमण न अणइक्कमणा य से होइ॥ आयंके उवसग्गे रोग होने पर, उपसर्ग आने पर, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । ब्रह्मचर्य गुप्ति की सुरक्षा के लिए, पाणिदया तवहेडं प्राणियों की दया के लिए, तप के लिए सरीर - वोच्छेयणट्ठाए। और शरीर-विच्छेद के लिए मुनि भक्त-पान की गवेषणा न करे । ३६. अवसेसं भण्डगं गिज्झा सब उपकरणों का आँखों से चक्खुसा पडिलेहए। प्रतिलेखन करे, और उन्हें लेकर परमद्धजोयणाओ आवश्यक हो, तो दूसरे गाँव में मुनि विहारं विहरए मुणी॥ आधे योजन की दूरी तक भिक्षा के लिए जाए। ३७. चउत्थीए पोरिसीए चतुर्थ पौरुषीनिक्खिवित्ताण भायणं। चतुर्थ प्रहर में प्रतिलेखना कर सज्झायं तओ कुज्जा सभी पात्रों को बाँध कर रख दे । सव्वभावविभावणं ॥ उसके बाद जीवादि सब भावों का प्रकाशक स्वाध्याय करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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