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२६-सामाचारी
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(९) लोल-प्रतिलेख्यमान वस्त्र का भूमि से या हाथ से संघर्षण करना।
(१०) एकामां-वस्त्र को बीच में से पकड़ कर एक दृष्टि में ही समूचे वस्त्र को देख जाना।
(११) अनेकरूपधूनना- वस्त्र को अनेक बार (तीन बार से अधिक) झटकना अथवा अनेक वस्त्रों को एक साथ एक बार में ही झटकना।
(१२) प्रमाणप्रमाद - प्रस्फोटन (झटकना) और प्रमार्जन का जो प्रमाण (नौ-नौ बार) बताया है, उसमें प्रमाद करना।
(१३) गणनोपगणना—प्रस्फोटन और प्रमार्जन के निर्दिष्ट प्रमाण में शंका के कारण हाथ की अंगुलियों की पर्व
रेखाओं से गिनती करना। २८. अणूणाइरित्तपडिलेहा
प्रस्फोटन और प्रमार्जन के प्रमाण अविवच्चासा तहेव य। से अन्यून, अनतिरिक्त (न कम और न पढमं पयं पसत्थं अधिक) तथा अविपरीत प्रतिलेखना ही सेसाणि उ अप्पसत्थाई ॥ शुद्ध होती है। उक्त तीन विकल्पों के
आठ विकल्प होते हैं, उनमें प्रथम
विकल्प-भेद ही शुद्ध है, शेष अशुद्ध २९. पडिलेहणं कुणन्तो प्रतिलेखन करते समय जो परस्पर
मिहोकहं कुणइ जणवयकहंवा। वार्तालाप करता है, जनपद की कथा देइ व पच्चक्खाणं
करता है, प्रत्याख्यान कराता है, दूसरों वाएइ सयं पडिच्छइ वा॥
को पढ़ाता है अथवा स्वयं पढ़ता है३०. पुढवीआउक्काए
वह प्रतिलेखना में प्रमत्त मुनि तेऊवाऊवणस्सइतसाण।। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुपडिलेहणापमत्तो
काय, वनस्पतिकाय और त्रसकायछण्हं पि विराहओ होइ॥ छहों कायों का विराधक–हिंसक होता
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