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________________ २७४ उत्तराध्ययन सूत्र सम्मद्दा २६. आरभडा वज्जेयव्वा य मोसली तइया। पष्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेड्या छट्ठा ।। प्रतिलेखन के छह दोष (१) आरभटा—निर्दिष्ट विधि से विपरीत प्रतिलेखन करना, अथवा एक वस्त्र का पूरी तरह प्रतिलेखन किए बिना ही बीच में दूसरे वस्त्र की प्रतिलेखना में लग जाना। (२) सम्मर्दा–प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को इस तरह पकड़ना कि उसके कोने हवा में हिलते रहें, उसमें सलवटें पड़ती रहें, अथवा उस पर बैठे हुए प्रतिलेखन करना। (३) मोसली–प्रतिलेखन करते हुए वस्त्र को ऊपर-नीचे, इधर-उधर किसी अन्य वस्त्र या पदार्थ से संघट्टित करते रहना। (४) प्रस्फोटना --- धूलिधूसरित वस्त्र को जोर से झटकना। (५) विक्षिप्ता–प्रतिलेखित वस्त्र को अप्रतिलेखित वस्त्रों में रख देना अथवा वस्त्र को इतना अधिक ऊँचा उठा लेना कि ठीक तरह प्रतिलेखना न हो सके। (६) वेदिका–प्रतिलेखना करते हुए घुटनों के ऊपर-नीचे या बीच में दोनों हाथ रखना, अथवा दोनों भुजाओं के बीच घुटनों को रखना, या एक घुटना भुजाओं में और दूसरा बाहर रखना। (७) प्रशिथिल-वस्त्र को ढीला पकड़ना। (८) प्रलम्ब-वस्त्र को इस तरह पकड़ना कि उसके कोने नीचे लटकते रहें। २७. पसिढिल-पलम्ब-लोला एगामोसा अणेगरूवधुणा। कुणइ पमाणि पमायं संकिए गणणोवगं कुज्जा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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