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२५-यज्ञीय २७. जहा पोमं जले जायें
नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तो कामेहि
तं वयं बूम माहणं ॥ २८. अलोलुयं मुहाजीवी
अणगारं अकिंचणं। असंसत्तं गिहत्थेसु तं वयं बूम माहणं॥
२९. जहिता पुव्वसंजोगं
नाइसंगे य बन्धवे। जो न सज्जइ एएहि तं वयं बूम माहणं ॥ पसुबन्धा सव्ववेया जटुं च पावकम्मणा। न तं तायन्ति दुस्सीलं कम्माणि बलवन्ति ह॥
___"जिस प्रकार जल में उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो कामभोगों से अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।" _____“जो रसादि में लोलुप नहीं है, जो निर्दोष भिक्षा से जीवन का निर्वाह करता है, जो गह-त्यागी है, जो अकिंचन है, जो गृहस्थों में अनासक्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।" ____-"जो पूर्व संयोगों को, ज्ञातिजनों की आसक्ति और बान्धवों को छोड़कर फिर उनमें आसक्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।”
-"उस दुःशील को पशबंध (यज्ञ में वध के लिए पशुओं को बाँधना) के हेतु सर्व वेद और पाप-कर्मों से किए गए यज्ञ बचा नहीं सकते, क्योंकि कर्म बलवान् हैं।"
-"केवल सिर मुंडाने से कोई श्रमण नहीं होता है, ओम् का जप करने से ब्राह्मण नहीं होता है, अरण्य में रहने से मुनि नहीं होता है, कुश का बना चीवर पहनने मात्र से कोई तपस्वी नहीं होता है।"
_समभाव से श्रमण होता है। ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है। ज्ञान से मुनि होता है। तप से तपस्वी होता
३१. न वि मुण्डिएण समणो
न ओंकारेण बम्भणो। न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो।।
३२. समयाए समणो होड
बम्भचेरेण बम्भणो। नाणेण य मुणी होइ
तवेण होइ तावसो॥ ३३. कम्मुणा बम्भणो होड़
कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्से कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा॥
-कर्म से ब्राह्मण होता है। कर्म से क्षत्रिय होता है। कर्म से वैश्य होता है। कर्म से ही शूद्र होता है।"
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