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उत्तराध्ययन सूत्र
२०. जो न सज्जड़ आगन्तं
पव्वयन्तो न सोयई। रमए अज्जवयणंमि तं वयं बूम माहणं॥
२१. जायरूवं जहामटुं
निद्धन्तमलपावगं। राग-द्दोस-भयाईयं तं वयं बूम माहणं ॥
२२. तवस्सियं किसं दन्तं
अवचियमंस-सोणियं। सुव्वयं पत्तनिव्वाणं
तं वयं बूम माहणं॥ २३. तसपाणे वियाणेत्ता
संगहेण य थावरे। जो न हिंसइ तिविहेणं
तं वयं बूम माहणं ।। २४. कोहा वा जइ वा हासा
लोहा वा जइ वा भया। मुसं न वयई जो उ
तं वयं बूम माहणं ॥ २५. चित्तमन्तमचित्तं वा
अप्पं वा जइ वा बहुं। न गेण्हइ अदत्तं जे
तं वयं बूम माहणं । २६. दिव्व- माणुस - तेरिच्छं
जो न सेवइ मेहुणं। मणसा काय-क्क्के णं तं वयं बूम माहणं ।
____“जो प्रिय स्वजनादि के आने पर आसक्त नहीं होता और न जाने पर शोक करता है। जो आर्य-वचन मेंअर्हद्वाणी में रमण करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।" ____“कसौटी पर कसे हुए और अग्नि के द्वारा दग्धमल हुए-शुद्ध किए गए जातरूप-सोने की तरह जो विशुद्ध है, जो राग से, द्वेष से और भय से मुक्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।" ___-"जो तपस्वी है, कृश है, दान्त है, जिसका मांस और रक्त अपचित (कम) हो गया है। जो सुव्रत है, शांत है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
-"जो त्रस और स्थावर जीवों को सम्यक् प्रकार से जानकर उनकी मन, वचन और काया से हिंसा नहीं करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।"
-"जो क्रोध, हास्य, लोभ अथवा भय से झूठ नहीं बोलता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।"
-"जो सचित्त या अचित्त, थोड़ा या अधिक अदत्त नहीं लेता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।"
--"जो देव, मनुष्य और तिर्यञ्चसम्बन्धी मैथुन का मन, वचन और शरीर से सेवन नहीं करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।"
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