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________________ पंचविसइमं अज्झयणं : पंचविंश अध्ययन जन्नइज्जं : यज्ञीय - माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो। जायाई जमजन्नंमि जयघोसे ति नामओ।। इन्दियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुणी गामाणुगामं रीयन्ते पत्तो वाणारसिं पुरिं॥ वाणारसीए बहिया उज्जाणंमि मणोरमे। फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए। ४. अह तेणेव कालेणं पुरीए तत्थ माहणे। विजयघोसे त्ति नामेण जन्नं जयइ वेयवी॥ अह से तत्थ अणगारे मासक्खमणपारणे। विजयघोसस्स जन्नंमि भिक्खस्सऽट्ठा उवहिए। हिन्दी अनुवाद ब्राह्मण कुल में उत्पन्न, महान् यशस्वी जयघोष नाम का ब्राह्मण था, जो हिंसक यमरूप यज्ञ में अनुरक्त यायाजी था। वह इन्द्रिय-समूह का निग्रह करने वाला, मार्गगामी महामुनि हो गया था। एक दिन ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ वाराणसी पहुँच गया। वाराणसी के बाहर मनोरम उद्यान में प्रासुक शय्या-वसति और संस्तारक-पीठ, फलक आदि आसन लेकर ठहर गया। उसी समय उस पुरी में वेदों का ज्ञाता, विजयघोष नाम का ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। एक मास की तपश्चर्या के पारणा के समय भिक्षा के लिए वह जयघोष मुनि विजयघोष के यज्ञ में उपस्थित हुआ। २५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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