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________________ २५८ उत्तराध्ययन सूत्र कोई प्रयोजन नहीं है । किन्तु तुम्हें जानना चाहिए कि जो यज्ञ तुम कर रहे हो, वह वास्तविक यज्ञ नहीं है । सच्चा यज्ञ भावयज्ञ है । कषाय, विषय वासनाओं को ज्ञानाग्नि में जलाना ही सच्चा यज्ञ है। सच्चारित्र से ही सच्चा ब्राह्मण होता है । जाति से कोई मानव ब्राह्मण नहीं होता है । न जाति से कोई क्षत्रिय है, न वैश्य है, और न शूद्र है । अपने-अपने समाचरित कार्यों से ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होता है । " मुनि के उपदेश से विजयघोष को यथार्थ ज्ञान हुआ। वह भी विरक्त हुए और अन्त में सम्यक् आचरण से मुक्त भी । प्रस्तुत अध्ययन में 'ब्राह्मण' की बड़ी ही मार्मिक व्याख्या है । यह वह सत्य है, जो शाश्वत है, अजर-अमर है । यह सत्य ही मानव को जाति और श्रेष्ठता के मिथ्या दर्प से मुक्त करता है । कुल की Jain Education International ***** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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