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उत्तराध्ययन सूत्र
८२. ठाणे य इइ के वुत्ते?
केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥
केशीकुमार श्रमण____“वह स्थान कौन-सा है।" केशी ने गौतम को कहा।
केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा
गणधर गौतम
-"जिस स्थान को महर्षि प्राप्त करते हैं, वह स्थान निर्वाण है, अबाध है, सिद्धि है, लोकाग्र है। क्षेम, शिव और अनाबाध है।"
८३. निव्वाणं ति अबाहं ति
सिद्धी लोगग्गमेव य।
खेमं सिवं अणाबाहं
जं चरन्ति महेसिणो॥ ८४. तं ठाणं सासयं वासं
लोगग्गंमि दुरारुहं। जं संपत्ता न सोयन्ति भवोहन्तकरा मुणी॥
८५. साहु गोयम! पन्ना ते
छिन्नो मे संसओ इमो। नमो ते संसयाईय सव्वसुत्तमहोयही! ॥
-“भव-प्रवाह का अन्त करने वाले मुनि जिसे प्राप्त कर शोक से मक्त हो जाते हैं, वह स्थान लोक के अग्रभाग में शाश्वत रूप से अवस्थित है, जहाँ पहुँच पाना कठिन है।"
केशीकुमार श्रमण__“गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह भी दूर किया। हे संशयातीत ! सर्व श्रुत के महोदधि ! तम्हें मेरा नमस्कार है।"
उपसंहार
इस प्रकार संशय के दूर होने पर घोर पराक्रमी केशीकुमार, महान् यशस्वी गौतम को शिर से वन्दना कर
८६. एवं तु संसए छिन्ने
केसी घोरपरक्कमे। अभिवन्दित्ता सिरसा
गोयमं तु महायसं ॥ ८७. पंचमहव्वयधम्म
पडिवज्जइ भावओ। पुरिमस्स पच्छिमंमी मग्गे तत्थ सुहावहे ।।
प्रथम और अन्तिम जिनों के द्वारा उपदिष्ट एवं सुखावह पंचमहाव्रतरूप धर्म के मार्ग में भाव से प्रविष्ट हुए।
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