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२३-केशि-गौतमीय ८८. केसी गोयमओ निच्चं.
तम्मि आसि समागमे। सुय-सीलसमुक्करिसो महत्यऽत्थविणिच्छओ॥
वहाँ तिन्दुक उद्यान में केशी और गौतम दोनों का जो यह सतत समागम हुआ, उसमें श्रुत तथा शील का उत्कर्ष
और महान् तत्त्वों के अर्थों का विनिश्चय हुआ।
समग्र सभा धर्मचर्चा से संतुष्ट हुई। अत: सन्मार्ग में समुपस्थित उसने भगवान केशी और गौतम की स्तति की, कि वे दोनों प्रसन्न रहें।
८९.
तोसिया परिसा सव्वा सम्मग्गं समुवट्ठिया। संथुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे ॥
-त्ति बेमि
--ऐसा मैं कहता हूँ।
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