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________________ २३-केशि-गौतमीय २४७. ७६. उग्गओ विमलो भाणू सव्वलोगप्पभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ॥ ७७. भाणू य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी।। ७८. उग्गओ खीण-संसारो सव्वन्नू जिणभक्खरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोयंमि पाणिणं॥ गणधर गौतम____“सम्पर्ण जगत में प्रकाश करने वाला निर्मल सूर्य उदित हो चुका है। वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा।" केशीकुमार श्रमण -“वह सूर्य कौन है ?” केशी ने गौतम को कहा। केशी के पूछने पर गौतम ने यह कहा गणधर गौतम__"जिसका संसार क्षीण हो गया है, जो सर्वज्ञ है, ऐसा जिन-भास्कर उदित हो चुका है। वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा।" केशीकुमार श्रमण -“गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संदेह दूर किया। मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें।" -"मने ! शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित प्राणियों के लिए तुम क्षेम, शिव और अनाबाध-बाधारहित कौन-सा स्थान मानते हो?" गणधर गौतम - "लोक के अग्र-भाग में एक ऐसा स्थान है, जहाँ जरा नहीं है, मृत्यु नहीं है, व्याधि और वेदना नहीं है। परन्तु वहाँ पहुँचना बहुत कठिन है।" ७९. साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा!॥ ८०. सारीर-माणसे दुक्खे बज्झमाणाण पाणिणं। खेमं सिवमणाबाहं ठाणं किं मन्नसी मुणी? ॥ ८१. अत्यि एगं धुवं ठाणं लोगग्गंमि दुरारुहं। जत्थ नत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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