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( ७ ) यह है साधना का गूढार्थ ! यह पथ अपने को बदलने का है, भागने का नहीं। वास्तव में बदले बिना समस्या का समाधान नहीं है । राजीमती रथनेमि को ठीक ही कहती है-"ऐसे कैसे काम चलेगा। ऐसे तो जब भी कभी किसी नारी को देखोगे, गड़बड़ा जाओगे, अस्थिर हो जाओगे। कदम-कदम पर ठोकरें खाना, कैसी साधुता है ? "१३ बात ठीक है, संसार में जब तक हैं, अन्धे-बहरे, लूले-लंगड़े, लुंज-पुंज अपंग हो कर तो किसी कोने में नहीं पड़े रहेंगे। जीवन एक यात्रा है। यात्रा में अच्छे-बुरे सभी प्रसंग आ सकते हैं । आवश्यकता है अपने को ही सँभाले रखने की। बाहर में किसी से झगड़ने की नहीं। अत: उत्तराध्ययन साधक को बाहर में इधर-उधर के विषयों से, वातावरणों से बचे रहने की, नीति-नियमों की रक्षा के लिए एकान्त में अलग बने रहने की अनेक चर्चाएँ करता है, जो प्राथमिक साधक के लिए अतीव आवश्यक भी हैं, और उपयोगी भी हैं, किन्तु आखिर में इसी तात्विक निष्कर्ष पर आता है कि विवेकज्ञान से अपने को अन्दर में ऐसा तैयार करो कि बाहर में भला-बुरा कुछ भी मिले, तुम अन्दर में 'मरुव्व वाएण अकंपमाणो' (उत्त० २०, १९) रहो।
उत्तराध्ययन की दृष्टि में क्रियाकाण्ड उत्तराध्ययन साधनापथ पर दृढ़ता से चलते रहने की बात तो करता है, किन्तु अर्थहीन देह-दण्ड की नहीं। वह सहज शील को महत्त्व देता है, इसीलिए वह कहता है-“जटा बढ़ाने से क्या होगा? मुण्ड होने से भी क्या बनेगा? नग्न रहो तो क्या और अजिन एवं संघाटी धारण करो तो क्या? यदि जीवन दुःशील है तो ये जरा भी त्राण नहीं कर सकेंगे।"१४ बिल्कुल ठीक कथन है यह। मुख्य बात यम की नहीं, संयम की है-कोरे अनाचार या अत्याचार की नहीं, सदाचार की है। देवेन्द्र ने जब घोर आश्रम की चर्चा की, और वहीं तप तपने की बात कही, तो राजर्षि नमि कहते हैं- "बाल तप से क्या होता है ? अन्तर्विवेक जागृत होना चाहिए। बालजीवं महीने-महीने भर के लम्बे उपवास करता है, पारणा के दिन कुशाग्र पर आए इतना अन्न-जल लेता है, तब भी वह श्रुताख्यात सहज शुद्ध धर्म की सोलहवीं कला को भी नहीं पा सकता है।"१५ कितनी बड़ी बात कही है उत्तराध्ययन में। इससे बढ़कर जड़ क्रिया-काण्ड का और कौन आलोचक होगा? उत्तराध्ययन की लड़ाई शरीर से नहीं है कि वह पापों की जड़ है। उसे खत्म करो। शरीर को तो वह संसार सागर को तैरने की नौका बताता है-“सरीर माहु नावित्ति ।"१६ मन के चंचल अश्व को भी मारने की बात नहीं कहता। १३. दशवकालिक, उत्तराध्ययन । १४. उत्तराध्ययन, ५।२१ १५. ,, ,, १५।४४ १६. ,, ,, २३।७३
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