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________________ २३-केशि-गौतमीय २४३ ५२. अग्गी य इइ के वुत्ता? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥ केशीकुमार श्रमण -“वे कौन-सी अग्नियाँ हैं?" केशी ने गौतम को कहा। केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा ५३. कसाया अग्गिणो वत्ता सुय-सील-तवो जलं ।। सुयधाराभिहया सन्ता भिन्ना हु न डहन्ति मे॥ ५४. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो!। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा!॥ ५५. अयं साहसिओ भीमो दुइस्सो परिधावई। जंसि गोयम! आरूढो कहं तेण न हीरसि?॥ गणधर गौतम____“कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) अग्नियाँ हैं। श्रुत, शील और तप जल है। श्रुत-शील-तप-रूप जल-धारा से बुझी हुई और नष्ट हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलाती हैं।" केशीकुमार श्रमण -"गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा संदेह दूर किया है। मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें।" -“यह साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व दौड़ रहा है। गौतम ! तुम उस पर चढ़े हुए हो। वह तुम्हें उन्मार्ग पर कैसे नहीं ले जाता है ?" गणधर गौतम - "दौड़ते हुए अश्व को मैं श्रुतरश्मि से-श्रुतज्ञान की लगाम से वश में करता हूँ। मेरे अधीन हुआ अश्व उन्मार्ग पर नहीं जाता है, अपितु सन्मार्ग पर ही चलता है।" केशीकुमार श्रमण --"अश्व किसे कहा गया है?" केशी ने गौतम से कहा। केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा ५६. पधावन्तं निगिण्हामि सुय- रस्सी-समाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवज्जई॥ ५७. अस्से य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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