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२३-केशि-गौतमीय
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५२. अग्गी य इइ के वुत्ता?
केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥
केशीकुमार श्रमण
-“वे कौन-सी अग्नियाँ हैं?" केशी ने गौतम को कहा। केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा
५३. कसाया अग्गिणो वत्ता
सुय-सील-तवो जलं ।। सुयधाराभिहया सन्ता भिन्ना हु न डहन्ति मे॥
५४. साहु गोयम! पन्ना ते
छिन्नो मे संसओ इमो!। अन्नो वि संसओ मज्झं
तं मे कहसु गोयमा!॥ ५५. अयं साहसिओ भीमो
दुइस्सो परिधावई। जंसि गोयम! आरूढो कहं तेण न हीरसि?॥
गणधर गौतम____“कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) अग्नियाँ हैं। श्रुत, शील और तप जल है। श्रुत-शील-तप-रूप जल-धारा से बुझी हुई और नष्ट हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलाती हैं।"
केशीकुमार श्रमण
-"गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा संदेह दूर किया है। मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें।"
-“यह साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व दौड़ रहा है। गौतम ! तुम उस पर चढ़े हुए हो। वह तुम्हें उन्मार्ग पर कैसे नहीं ले जाता है ?"
गणधर गौतम
- "दौड़ते हुए अश्व को मैं श्रुतरश्मि से-श्रुतज्ञान की लगाम से वश में करता हूँ। मेरे अधीन हुआ अश्व उन्मार्ग पर नहीं जाता है, अपितु सन्मार्ग पर ही चलता है।"
केशीकुमार श्रमण
--"अश्व किसे कहा गया है?" केशी ने गौतम से कहा।
केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा
५६. पधावन्तं निगिण्हामि
सुय- रस्सी-समाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवज्जई॥
५७. अस्से य इइ के वुत्ते?
केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥
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