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________________ २४४ ५८. मणो साहसिओ भीमो दुट्टुस्सो परिधावई । तं सम्मं निगिण्हामि धम्मसिखाए कन्थगं ॥ ५९. साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो | अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! || ६०. कुप्पहा बहवो लोए जेहिं नासन्ति जंतवो ! अद्धाणे कह तं न नस्ससि ? गोयमा ! ॥ वट्टन्ते ६१. जे य मग्गेण गच्छन्ति जे य उम्मग्गपट्ठिया । ते सव्वे विझ्या मज्झं तो न नस्सामहं मुणी ! ॥ ६२. मग्गे य इइ के वुत्त ? केसी गोयममब्बवी । सिमेव गोयमो बुवंतं तु दणमब्बवी ॥ ६३. कुप्पवयण पासण्डी सव्वे उम्मग्गपट्टिया | सम्मग्गं तु जिणक्खायं एस मग्गे हि उत्तमे ॥ Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र गणधर गौतम - " मन ही साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व है, जो चारों तरफ दौड़ता है । उसे मैं अच्छी तरह वश में करता हूँ । धर्म-शिक्षा से वह कन्थक— उत्तम जाति का अश्व हो गया है ।" केशीकुमार श्रमण - " गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह संदेह दूर किया । मेरा एक और भी संदेह है । गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें ।” - " गौतम ! लोक में कुमार्ग बहुत हैं, जिससे लोग भटक जाते हैं । मार्ग पर चलते हुए तुम क्यों नहीं भटकते हो ?" गणधर गौतम - - " जो सन्मार्ग से चलते हैं और जो उन्मर्ग से चलते हैं, उन सबको मैं जानता हूँ । अतः हे मुने ! मैं नहीं भटकता हूँ ।" केशीकुमार श्रमण - “ मार्ग किसे कहते हैं ?" केशी ने गौतम को कहा केशी के पूछने पर गौतम ने यह कहा— गणधर गौतम - " मिथ्या प्रवचन को मानने वाले सभी पाषण्डी - व्रती लोग उन्मार्ग पर चलते हैं । सन्मार्ग तो जिनोपदिष्ट है, और यही उत्तम मार्ग है । " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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