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________________ २४० उत्तराध्ययन सूत्र ३३. अह भवे पइन्ना उ मोक्खसब्भूयसाहणे। नाणं च दंसणं चेव चरित्तं चेव निच्छए॥ ३४. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा!॥ अणेंगाणं सहस्साणं मझे चिसि गोयमा!। ते य ते अहिगच्छन्ति कहं ते निज्जिया तुमे? ॥ ३६. एगे जिए जिया पंच पंच जिए जिया दस। दसहा उ जिणित्ताणं सव्वसत्तू जिणामहं ॥ -“वास्तव में दोनों तीर्थंकरों का एक ही सिद्धान्त है कि मोक्ष के वास्तविक साधन ज्ञान, दर्शन, और चारित्र ही हैं।" केशीकुमार श्रमण --"गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संदेह तो दूर कर दिया। मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उस विषय में भी मुझे कहें।" ____“गौतम ! अनेक सहस्र शत्रुओं के बीच में तुम खड़े हो। वे तुम्हें जीतना चाहते हैं। तमने उन्हें कैसे जीता?” गणधर गौतम___एक को जीतने से पाँच जीत लिए गए और पाँच को जीत लेने से दस जीत लिए गए। दसों को जीतकर मैंने सब शत्रुओं को जीत लिया।" केशीकुमार श्रमण - "गौतम ! वे शत्रु कौन होते हैं?” केशी ने गौतम को कहा। केशी के यह पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा गणधर गौतम -"मुने ! न जीता हुआ एक अपना आत्मा ही शत्रु है। कषाय और इन्द्रियाँ भी शत्रु हैं। उन्हें जीतकर नीति के अनुसार मैं विचरण करता हूँ।" । . केशीकुमार श्रमण___-“गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संदेह दूर किया। मेरा एक और भी संदेह है। गौतम ! उस विषय में भी मुझे कहें।" ३७. सत्तू य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी। तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी॥ ३८. एगप्पा अजिए सत्तू कसाया इन्दियाणि य। ते जिणित्तु जहानायं विहरामि अहं मुणी!॥ ३९. साह गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा!॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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