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केशि- गौतमीय
भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा
का
भगवान् महावीर की परम्परा में अवतरण ।
कुमार श्रमण केशी, भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के चतुर्थ पट्टधर शिष्य थे, गौतम, भगवान् महावीर के संघ के प्रथम गणधर थे। दोनों ही महान् ज्ञानी, उदार और व्यवहार कुशल थे। एक बार दोनों ही अपने-अपने शिष्य संघ के साथ श्रावस्ती में आए। भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर की परम्पराओं में कुछ बातों को लेकर आचार-भेद और विचार-भेद था । ज्यों ही दोनों के शिष्य एक-दूसरे के परिचय में आए तो उनके मन में प्रश्न खड़ा हुआ कि “एक ही लक्ष्य की साधना में यह भेद क्यों है ?”
'केशी कुमार भगवान् पार्श्वनाथ की पुरानी परम्परा के प्रतिनिधि हैं, अतः परम्परा के नाते वे मुझ से बड़े हैं - यह सोचकर गौतम अपने शिष्यों के साथ तिन्दुक उद्यान में आए, जहाँ केशी कुमार श्रमण ठहरे हुए थे | महाप्राज्ञ गौतम का केशी कुमार ने योग्य स्वागत किया ।
केशी कुमार ने गौतम से पूछा - " जबकि हम सभी का लक्ष्य एक है, तब हमारी साधना में इतनी विभिन्नता क्यों है ? कोई सचेलक है, कोई अचेलक है 1 कोई चातुर्याम संवर धर्म को मान रहा है, कोई पंचयाम को । हमारी मान्यताओं और धारणाओं में उक्त विविधता का क्या रहस्य है ?”
गौतम ने समादर के साथ कहा- “ भन्ते ! हमारा मूल लक्ष्य एक है, इसमें कोई संदेह नहीं है। जो विविधता नजर आ रही है, वह समय की बदलती हुई गति के कारण आई है। लोगों के कालानुसारी परिवर्तित होने वाले स्वभाव और विचार के कारण आई है। बाह्याचार और वेष का केवल लोक-प्रतीति ही प्रयोजन है । मुक्ति के वास्तविक साधन तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही हैं । "
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