________________
२२९
२२-रथनेमीय २७. एवं ते रामकेसवा .
दसारा य बहू जणा। अरिडणेमि वन्दित्ता
अइगया बारगापुरिं । २८. सोऊण रायकन्ना
पव्वजं सा जिणस्स उ। नीहासा य निराणन्दा सोगेण उ समुत्थया॥
इस प्रकार बलराम, केशव, दशार्ह यादव और अन्य बहुत से लोग अरिष्टनेमि को वन्दना कर द्वारकापुरी को लौट आए।
भगवान् अरिष्टनेमि की प्रव्रज्या को सुनकर राजकन्या राजीमती के हास्य (हँसी, प्रसन्नता) और आनन्द सब समाप्त हो गए। और वह शोक से मूछित हो गई।
राजीमती ने सोचा–“धिक्कार है मेरे जीवन को । चूँकि मैं अरिष्टनेमि के द्वारा परित्यक्ता हूँ, अत: मेरा प्रवजित होना ही श्रेय है”।
धीर तथा कृतसंकल्प राजीमती ने कूर्च और कंघी से सँवारे हए भौरे जैसे काले केशों का अपने हाथों से लुंचन किया।
२९. राईमई विचिन्तेइ
धिरत्यु मम जीवियं। जा ऽहं तेण परिच्चत्ता
सेयं पव्वइडं मम॥ ३०. अह सा भमरसन्निभे
कुच्च-फणग-पसाहिए। सयमेव लुचई केसे
धिइमन्ता ववस्सिया॥ ३१. वासुदेवो य णं भणइ
लुत्तकेसं जिइन्दियं। संसारसागरं घोरं
तर कन्ने! लहुं लहुं ॥ ३२. सा पव्वइया सन्ती
पव्वावेसी तहिं बहुं। सयणं परियणं चेव
सीलवन्ता बहुस्सुया॥ ३३. गिरिं रेवययं जन्ती
वासेणुल्ला उ अन्तरा। वासन्ते अन्धयारंमि अन्तो लयणस्स सा ठिया।
वासुदेव ने लुप्त-केशा एवं जितेन्द्रिय राजीमती को कहा"कन्ये ! तू इस घोर संसार-सागर को
अति शीघ्र पार कर।" ___शीलवती एवं बहुश्रुत राजीमती ने प्रवजित होकर अपने साथ बहुत से स्वजनों तथा परिजनों को भी प्रव्रजित कराया।
वह रैवतक पर्वत पर जा रही थी कि बीच में ही वर्षा से भींग गई। जोर की वर्षा हो रही थी, अन्धकार छाया हुआ था। इस स्थिति में वह गुफा के अन्दर पहुँची।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org